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________________ कैसी है भक्त की प्रणिधान सहित भक्ति ? कैसी है भगवान की भक्त के प्रति करुणा? उंबर हमें प्रभु-दर्शन कैसे करना यह सीखा रहे हैं । प्रभु-दर्शन करना ही हो तो प्रभुमय बनना पडता है । जगतपति के दर्शन के लिए जगत को भूलना पडता है । उंबर कहते हैं समझ पड़ें या नहीं पडे पर निःस्वार्थभाव से समर्पण के साथ प्रणिधानपूर्वक प्रभुदर्शन करो, जीवन में नया उजास होगा, जीवन प्रकाशमय बनेगा । दर्शन से पापनाश ___ मयणा-उंबर प्रभु-दर्शन करते है । उंबर तो पहली बार ही प्रभुदर्शन कर रहे है । दोनों का पापोदय चल रहा है, पर आई हुई स्थिति का प्रसन्न मुख से स्वीकार कर लिया है । ऐसी स्थिति में भी उंबर मयणा के वचन से दर्शन करने जाते हैं । प्रभु-दर्शन का सबसे पहला प्रभाव हमारे पाप-नाश करना है । बाल-गोपाल प्रसिद्ध 'दर्शनं देव देवस्य'स्तुति में मोक्ष की बात आखरी है । पुण्य की बात भी अंतिम है, पाप-नाश की बात पहली है । पूर्व भवों में अपनी मन-वचन-काया की अशुभ प्रवृत्तियों से जो पाप बांधे है, जो अशुभ संस्कार लेकर आए है, उन्हें दूर करने की ताकत प्रभु-दर्शन में है। 'दर्शनं देव देवस्य' श्लोक में प्रतिमा के दर्शन नहीं, देवाधिदेव के दर्शन करने से पाप-नाश होता है, यह बात स्पष्ट बताई है । प्रतिमा प्रभु तक पहुँचने का माध्यम है । उंबर को प्रतिमा में दिव्यतत्त्व के दर्शन होते है । प्रभु-तत्त्व के दर्शन होते है, इससे एकाकार बन जाते हैं । अपना और जगत का भान भूलकर परमतत्त्व के दर्शन में लीन बन गए हैं । हम भी प्रभु-दर्शन करते है, कुल परंपरा से दर्शन करने के संस्कार है, इसमें समझ मिल जाए तो हमारी भी प्रवृत्ति बदल जाती है । प्रतिमा नहीं पर हाजराहजूर परमात्मा-दिव्य तत्त्व बिराजमान है, ऐसा भाव आए तो ही तू ही-तू ही भाव प्रगट होता है । यहाँ उंबर संदेश दे रहे हैं, 'प्रभु के एक ही बार के दर्शन पापनाश कर सकते है, बशर्ते प्रतिमा में प्रभु के दर्शन करो ।'' श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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