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________________ ।। ॐ ह्रीं श्रीं सिद्धचक्राय नमः ।। 1. उंबर - श्रीपाल गुणदर्शन पूज्य आचार्यदेव श्री रत्नशेखरसूरि म.साहेब ने श्रीपाल कथा रचकर जैन-अजैन जगत पर अनहद उपकार किया है । श्रीपाल कथा मात्र कथा नहीं परन्तु कथानुयोग है । कथा ओर कथानुयोग में क्या अंतर है । कथा यानि मात्र कथा सुनकर कर्णानंद पाना । कथानुयोग यानि ? कथानुयोग शब्द में तीन विभाग है - कथा + अनु + योग यानि कथा के पीछे मन, वचन, काया के योगों को ले जाकर तत्त्व पाना यह कथानुयोग का अर्थ है और तत्त्व के माध्यम से आत्मानंद पाना यह कथानुयोग का रहस्य है । जैन शासन में कथा नहीं, कथानुयोग का महत्त्व है । श्रीपाल कथा, कथा नहीं, कथानुयोग है । इसका हर प्रसंग तत्त्व परोसता है । आत्मानंद की अनुभूति करने के लिए यह महान ग्रंथ है पर उसे पाने के लिए सूक्ष्मदृष्टि (विचारसरणी) चाहिए, जो मिलती है गुरुगम से या मोह की मंदता से तत्त्व श्रवण-चिंतन करने से । T I पू.आचार्य भगवंत में कथा रचना का अद्भुत कौशल्य है । श्रीपाल कथा के प्रारंभ में कोढ़ी रुप में श्रीपाल का प्रवेश करवाया है । रुप-रंग, नाम, परिवार सब बेढ़ंगा है । नाम उंबर है, शरीर में संक्रामक कोढ़ रोग है । राजा होने के बाद भी दर-दर भटकता है, अकेला है । कुष्ठरोगियों के साथ रहना पड़ रहा है, लोग धिक्कार रहे है । इस प्रस्तुतिकरण में प्रस्तुतकर्ता श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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