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________________ परिशिष्ट - १ पूजनोमां मंडल (मांडलुं) आलेखन रहस्यमय एक अनुचिंतन - आचार्य श्री नयचंद्रसागरसूरि म. जिनशासनमां प्रभुभक्तिना अनेक मार्गो पैकी वर्तमान काले सिद्धचक्र आदि पूजनोतुं प्राधान्य घणुं वधी रह्यु छे. आ पूजनोमां विधिनी शुद्धि जळवाय तो वर्तमानकाळे पण शांतिक अने पौष्टिक ओम बन्ने रीते अनुष्ठानो फळे छे. छेल्ला ५० वर्षमा अने तेमाय छेल्ला २० वर्षथी पूजनो भणाववानी प्रणालिका पूर जोशथी वधती जाय छे. भणाता पूजनोमां घणी घणी बाबतो उपर विचार करवा जेवो छे. परंतु प्रस्तुत प्रसंगे पूजनमा मुख्यस्थान पामता मांडला अंगे विचारणा करी छे. ___आजे मोटे भागे पूजनोमां मांडलानुं आलेखन भूमिना तळिया उपर ज थइ रह्य छे. जेमां शासन के धर्मना मूळ समान विनय गुणनो अभाव जणाइ रह्यो छे. “पूज्य वस्तुने नाभिथी उंची राखवी जोइो” आ विनय धर्म छे. पूजननु मांडलुं नीचे बनाववाथी विनय लोपाय छे. उपरांत सिद्धचक्र पूजननुं मूळ “सिरि सिरिवाल कहा” नामनो ग्रंथ छे. ఉండుడుడు బలులు COOCHOOCHOCHHARC
SR No.034034
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2016
Total Pages109
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size4 MB
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