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________________ प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग प्रत्येक जीवित कोशिका में सहस्रों की संख्या में विभिन्न प्रकार के रसायन विद्यमान होते हैं। ये रसायन केवल निष्क्रिय पदार्थों का मिश्रण न होकर निरन्तर सक्रिय रूप में एक दूसरे के साथ क्रिया में प्रवृत्त रहते हैं। आनुवंशिकता की सम्पूर्ण जानकारी का संकेत भी उनमें रासायनिक रूप में होता है। शरीर के विभिन्न अंगों की संरचना भी विभिन्न रासायनिक उपादानों से की जाती है। भिन्न-भिन्न अंशों में विद्यमान विभिन्नता का कारण भी रासायनिक पदार्थों की रचना की विभिन्नता ही है। I समान संरचना वाली कोशिकाओं के समूह एवं उनके बीच रहे हुए निर्जीव पदार्थ मिलकर ऊतक की रचना करते हैं। जैसे १. त्वचा या आच्छादन करने वाले ऊतक २. अस्थि और उपास्थि ( Cartilage) ३. मांसपेशियों के ऊतक ४. तन्त्रिकाओं के ऊतक आदि । एक ही प्रकार के कार्यों में संलग्न अनेक ऊतकों के समूहों से अवयव बनते हैं। उदाहरणार्थ- हृदय, जो कि शरीर का एक प्राण- आधार (Vital) अवयव है, जीवित शरीर को टिकाए रखने के लिए 'संघ कार्य' एक आवश्यक स्थिति है। अर्थात् सभी अवयवों द्वारा एक दूसरे को परस्पर सहयोग करना अत्यन्त अपेक्षित है। एक ही प्रकार के कार्यों की श्रृंखला को निष्पादित करने वाले अनेक अवयवों के समूह को "तन्त्र" कहा जाता है। जैसे- श्वसन तंत्र । शरीर के जिन तंत्रों के विषय में अधिक विस्तृत जानकारी अपेक्षित हैं, वे हैं १. नाड़ी तंत्र २. रक्त परिसंचरण तंत्र ३. श्वास- तंत्र ४. पाचन-तंत्र तथा विसर्जन-तंत्र ५. अन्तःस्रावी ग्रन्थि-तंत्र नाड़ी तंत्र (तंत्रिका तंत्र) नाड़ी-संस्थान (Nervous System) मानव शरीर का जटिलतम तन्त्र है। यह शरीर के अन्य सभी तन्त्रों का नियंत्रण एवं संयोजन करता है तथा उनके माध्यम से समग्र शरीर के क्रियाकलापों को संचालित करता है। इसलिए इसे शरीर का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तंत्र माना जाता है। यदि Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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