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________________ : ३ : श्वास-प्रेक्षा वैज्ञानिक दृष्टिकोण भोजन पानी की तुलना में श्वास भोजन के लिए अधिक मूल्यवान ऊर्जा-स्रोत है। वस्तुतः तो श्वास ही जीवन है। हमारी जीवन की प्रत्येक क्रिया श्वसन के साथ गाढ़ रूप से जुड़ी हुई है। श्वसन क्रिया का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है-शरीर की कोशिकाओं से निःसृत कार्बन-डाइ-ऑक्साइड को शरीर से बाहर निकाल देना। कोशिकाओं में ऊर्जा के लिए ऑक्सीजन की निरन्तर आवश्यकता होती है तथा ऊर्जा-उत्पादन की क्रिया के साथ-साथ कार्बन-आइ-ऑक्साइड पैदा हो जाता है, जिसको यदि शरीर के भीतर एकत्रित होने दिया जाए, तो उससे कोशिकाएं विषाक्त हो जाएंगी। सम्यक् श्वास के सर्वोपरि महत्त्व को किसी भी प्रकार अपेक्षित नहीं किया जा सकता। पर दुर्भाग्य से बहुत थोड़े ही लोग सही और पूरा श्वास लेते हैं। दुर्बल स्वास्थ्य के अनेक लक्षण रक्त की अपर्याप्त ऑक्सीजन-आपूर्ति तथा मन्द परिसंचार के परिणाम हैं। हम न केवल गलत ढंग से श्वास लेते हैं, अपितु बहुत बार श्वास लिया जाता है, वह भी अशुद्ध एवं दूषित होता है। परिणाम स्वरूप हमारी स्नायविक दुर्बलता और उत्तेजना बढ़ती है और रोगों का प्रतिकार करने की हमारी शक्ति में भारी कमी हो जाती है। श्वसन-प्रक्रिया फफ्फुस अपने आप में मांसपेशी-रहित होते हैं। अतः श्वसन-प्रक्रिया की आवश्यक यांत्रिक क्रिया में उनका सीधा योगदान नहीं मिलता। यह यांत्रिक बल तीन प्रकार से उपलब्ध हो सकता है (१) तनुपट (डायाफ्राम) को ऊपर नीचे खिसका कर (२) अन्तर्पणुकीय मांसपेशियों के संकुचन-विस्तरण के द्वारा (३) हंसली के हिस्से को ऊपर-नीचे खिसका कर । Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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