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________________ ध्यान : सिद्धान्त और प्रयाग प्रकार सारी प्रक्रिया के दौरान जहां एक ओर चेतन मन पूर्णतः जागत सजग था. वहीं दूसरी ओर शरीर-हमारा भौतिक हिस्सा-धीरे-धीर चेतनारहित-सा. होता जा रहा था। इससे अभौतिक चैतन्य को उसके प्रतिपक्षी भौतिक हिस्से से मुक्त अनुभव करने का अवसर मिला। इस प्रकार के कायोत्सर्ग में स्वयं के शरीर से बाहर अपने आप को तैयार हा अनुभव किया जा सकता है, जो निश्चित रूप से न तो स्वतः-सूचन का रूप है और न ही सम्मोहन है, अपितु एक वास्तविक तथ्य की सही-सही अनुभूति है। व्युत्सर्ग चेतना विवेक-चेतना पुष्ट होती है, तब व्युत्सर्ग (त्याग) की क्षमता बढ़ती है, त्याग और विसर्जन की शक्ति का विकास होता है। फिर छोड़ने में संकोच नहीं होता, चाहे शरीर को छोड़ना पड़े, इन्द्रिय-विषयों को छोड़ना पड़े, परिवार या धन को छोड़ना पड़े। उसमें छोड़ने की इतनी क्षमता बढ़ जाती है कि वह जब चाहे, तब किसी को भी छोड़ सकता है, कोई मोह नहीं रहता। व्युत्सर्ग की चेतना जागने पर साधक को स्पष्ट अनुभव हो जाता है कि मैं चैतन्यमय हूं, यही मेरा अस्तित्व है। चैतन्य के अतिरिक्त जितना भी जुड़ाव हुआ है, वह विजातीय है, मेरा नहीं। प्रज्ञा का जागरण : समता का विकास कायोत्सर्ग की एक और महत्त्वपूर्ण निष्पत्ति है-प्रज्ञा का जागरण। जब कायोत्सर्ग के द्वारा प्रज्ञा जागती है, तब जीवन में समता स्वतः अवतरित होती है। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, निन्दा-प्रशंसा, जीवन-मरण-इन द्वन्द्वों में सम रहने की क्षमता उसी व्यक्ति में विकसित होती है, जो कायोत्सर्ग को साध लेता है। फिर उसके लिए प्रिय और अप्रिय में कोई भेद नहीं होता। दोनों आयाम समाप्त हो जाते हैं। तीसरा आयाम उद्घाटित होता है। वह आयाम है-समता का। बुद्धि और प्रज्ञा में इतना ही अंतर होता है कि बुद्धि चुनाव करती है-यह प्रिय है, यह अप्रिय है। प्रज्ञा में चुनाव समाप्त हो जाता है। उसके सामने प्रियता और अप्रियता का प्रश्न ही नहीं उठता। उसके समक्ष समता ही प्रतिष्ठित होती है। कायोत्सर्ग के अभ्यास से बुद्धि का पलड़ा हल्का होता जाएगा और प्रज्ञा का पलड़ा भारी होता चला जाएगा। जीवन में Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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