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________________ है. शरीर की स्थिरता। शरीर जितना स्थिर होता है, उतना ही चित्त शुद्ध होता है। वित्त की अशुद्धि का सबसे बड़ा कारण है-चित्त की चंचलता। शरीर की स्थिरता हुए बिना चित्त की स्थिरता नहीं होती, शरीर की स्थिरता हुए विना श्वारा शांत नहीं होता, मौन नहीं होता, मौन शांत नहीं होता, स्मृतिया शांत नहीं होती, कल्पनाए समाप्त नहीं होती, विचार का चक्र रुकता नहीं। इसलिए सबसे पहले आवश्यक है, कायोत्सर्ग । कायोत्सर्ग होता है, तो अनायास सारी बातें हो जाती हैं। साधना के लिए अगले चरण अपने आप आगे बढ़ जाते हैं। हमारा यह शरीर जिस दिन हिमालय की भांति निष्प्रकम्प, अडोल और अचंचल बन जाएगा, तो फिर साधना के लिए और कुछ जानने की, और कुछ समझने की, और कुछ करने की जरूरत नहीं होगी। साधना की सारी घटनाएं अपने आप घटित होने लग जाएंगी और साधना स्वयं साकार होकर हमारे सामने मूर्तिमती बन जाएगी। कोई समस्या सामने आती है, आप सोचते हैं कि समस्या का समाधान कैसे मिले? एकांत में जाकर बैठते हैं, शांत होकर बैठते हैं, समस्या का समाधान मिल जाता है। जीवन की यात्रा चलाने वाला, व्यवहार की भूमिका पर जीने वाला हर व्यक्ति समय-समय पर कायोत्सर्ग करता है। अध्यात्म की यात्रा करने वाले व्यक्ति के लिए तो इसके सिवाय और कोई विकल्प ही नहीं है। जो कायोत्सर्ग की सम्यग् आराधना नहीं करता, कायोत्सर्ग को ठीक नहीं साधता, वह अध्यात्म के क्षेत्र में कोई प्रगति नहीं कर सकता। निष्पत्तियां __ अब हम शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक आदि दृष्टियों से होने वाली निष्पत्तियों की चर्चा करेंगे, जिसमें तनाव-मुक्ति, चित्त की एकाग्रता, ज्ञाता-द्रष्टा-भाव का विकास, चैतन्य का साक्षात्कार, प्रज्ञा का जागरण आदि उल्लेखनीय हैं। चार अवस्थाएं कायोत्सर्ग की प्रथम अवस्था में स्थिरता प्राप्त होती है। शारीरिक स्तर पर तनाव-मुक्ति का अनुभव होने लगता है तथा कुछ मनःकायिक रोगों में प्रत्यक्ष सुधार का अनुभव भी होने लगता है। कायोत्सर्ग की दूसरी अवस्था में कुछ विशिष्ट परिवर्तन घटित होते हैं Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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