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________________ पत्र में काफी बड़ी संख्या में ग' पर काफी चर्चा हुई। ‘भाव f का संक्षिप्त संकलन 'तुम किया गया। उस दस-दिवसीय साधना-सत्र में काफी बड़ी साध-साध्वियों ने भाग लिया। उसमें 'जैन योग' पर काफी चर्चक्रिया' के विशेष प्रयोग किए गए। उस चर्चा का संक्षिप्त संक अनंत शक्ति के स्रोत हो' पुस्तक में प्राप्त है। कई शताब्दियों से विच्छिन्न ध्यान-परम्परा की खोज के लिए सभी प्रयत्न पर्याप्त सिद्ध नहीं हुए। जैसे-जैसे कुछ समझ में आते गा वैसे-वैसे प्रयत्न को तीव्र करने की आवश्यकता अनुभव होती गयी। वि. सं. २०२६ में लाडनूं में एकमासीय साधना-सत्र का आयोजन किया गया। उसके बाद वि. सं. २०२८-२०३१ में चुरू, राजगढ़, हिसार और दिल्ली-इन चारों स्थानों में दस-दस दिवसीय साधना-सत्र आयोजित किए गए। ये सभी साधना-सत्र 'तुलसी अध्यात्म नीडम्' जैन विश्व भारती के तत्त्वावधान में और आचार्य तुलसी के सान्निध्य में सम्पन्न हुए। इन शिविरों ने साधना को पुष्ट वातावरण निर्मित किया। अनेक साधु-साध्वियों तथा गृहस्थ ध्यान-साधना में रुचि लेने लगे। अनेक साधु-साध्वियां इस विषय पर विशेष अभ्यास और प्रयोग भी करने लगे। वि. सं. २०३२ के जयपुर-चातुर्मास में परम्परागत जैन ध्यान का अभ्यास-क्रम निश्चित करने का संकल्प हुआ। हम लोग आचार्यश्री के उपपात में बैठे और संकल्प पूर्ति का उपक्रम शुरू हुआ। हमने ध्यान की इस अभ्यास विधि का नामकरण 'प्रेक्षाध्यान' किया। यह 'प्रेक्षा-ध्यान-पद्धति के विकास का संक्षिप्त इतिहास है। -आचार्य महाप्रज्ञ Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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