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________________ प्रेक्षाध्यान आधार और स्वरूप व्यक्ति अपने निर्णय को साकार करने के लिए कटिबद्ध को जाता है। सकल्प के तीन रूप हैं-स्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्मतम। स्थूल-संकल्प की अभिव्यक्ति शब्द के रूप में होती है। सूक्ष्म-संकल्प विचार अथवा चिंतन के रूप में अंकित होता है। सूक्ष्मतम-संकल्प शब्द, विचार के पूर्व अन्तर-चित्त में उठने वाली उर्मि है। वह ऊर्मि अत्यंत शक्ति-संपन्न और चैतन्य के सर्वाधिक निकट होती है। संकल्प हो या विकल्प, उससे एक प्रकार के चित्त का निर्माण होता है। भारतीय मनीषिया ने इसलिए ही 'शिवसंकल्पमस्तु मे मनः' कहा है। संकल्प के पीछे विशेषण लगाया गया है। बिना शिवत्व के संकल्प साधना का विघ्न बन जाता है। इसलिए ही जैन परम्परा में श्रद्धा, ज्ञान एवं चरित्र के पूर्व 'सम्यग्' शब्द का नियमन किया है। 'सम्यग' शब्द अपने आप में रहस्य छिपाए हुए है। संकल्प : कब और कैसे संकल्प को अभिव्यक्त और स्वीकृत करने के लिए विशेष स्थिति का निर्माण आवश्यक है। उसके बिना किया गया संकल्प मात्र उच्चारण रह जाता है। संकल्प को सजीव करने के लिए उसमें प्राण का संचार आवश्यक है। प्राण का संचार एक विशेष वातावरण में ही किया जा सकता है। उसके लिए शरीर, वाक और मन की एकरूपता अनिवार्य है। अभ्यास १. प्रेक्षा-ध्यान का आशय समझाते हुए प्रेक्षा-ध्यान की उपसम्पदा को स्पष्ट कीजिए। २. कायोत्सर्ग क्या है? इसकी विधि और इसकी उपयोगिता स्पष्ट कीजिए। ३. श्वास-प्रेक्षा और शरीर प्रेक्षा का तात्पर्य समझाइये और इनकी साधना-विधि स्पष्ट कीजिए। ४. लेश्या के अभिप्राय, उसके विभिन्न प्रकारों और उसकी साधना के सुफलों को स्पष्टतया समझाइये। ५. भावना और अनुप्रेक्षा का अन्तर स्पष्ट कीजिए और ध्यान की योग्यता प्राप्त करने के लिए अपेक्षित भावना तथा अनुप्रेक्षाओं के विभिन्न प्रकारों पर प्रकाश डालिए। ६ संयम और संकल्प की व्याख्या करते हुए उसकी महत्ता समझाएं। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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