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________________ प्रेक्षाध्यान: सिद्धान्त और प्रयोग श्वास को मन्द, दीर्घ या सूक्ष्म करने से मन शांत होता है। इसके साथ-साथ आवेश शांत होते हैं, कषाय शांत होते हैं, उत्तेजनाएं शांत और वासनाएं शांत होती हैं। श्वास जब छोटा होता है, तब वासनाएं उभरती हैं, उत्तेजनाएं आती हैं, कषाय जागृत होते हैं। इन सबसे श्वास प्रभावित होता है। इन सब दोषों का वाहन है - श्वास । जब कभी मालूम पड़े कि उत्तेजना आने वाली है, तब तत्काल श्वास को लम्बा कर दें, दीर्घश्वास लेने लग जाएं, आने वाली उत्तेजना लौट जाएगी। इसका कारण है कि श्वास का वाहन उसे उपलब्ध नहीं हो पाता है। बिना आलम्बन के कोई उत्तेजना या वासना प्रकट हो नहीं सकती । ध्यान की साधना करने वाला साधक मन की सूक्ष्मता को पकड़ने में अभ्यस्त हो जाता है। वह जान लेता है कि मस्तिष्क के अमुक केन्द्र में कोई वृत्ति उभर रही है। इस तत्काल दीर्घश्वास का प्रयोग प्रारम्भ कर देता है । उभरने वाली वृत्ति तत्काल शांत हो जाती है । साधक उन वृत्तियों की उत्तेजनाओं का शिकार नहीं होता । २० श्वास वर्तमान की वास्तविकता है। उसे देखने का अर्थ है - समभाव में जीना, वीतरागता के क्षण में जीना, राग-द्वेष- मुक्त क्षण में जीना । जो व्यक्ति श्वास को देखता है, उसका तनाव अपने आप विसर्जित हो जाता है। दीर्घश्वास प्रेक्षा का प्रयोग चित्त को वर्तमान में चल रही क्रिया पर ही एकाग्र (Concentrate) होने के लिये प्रशिक्षित करने की सरल विधि है । इससे व्यक्ति की कार्य-क्षमता बढ़ती है। जैसे ऊपर बताया गया था 'प्रेक्षा ध्यान' आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने की पद्धति है। आत्मा को देखने का पहला द्वार है - श्वास । भीतर की यात्रा का पहला द्वार है - श्वास । जब भीतर की यात्रा शुरू करनी होती है, तब प्रथम प्रवेश-द्वार श्वास से गुजरना होता है। जब श्वास के साथ मन भीतर जाने लगता है, तब अन्तर्यात्रा शुरू होती है। श्वास आत्मा है। अतः जहां तक हम पहुंचना चाहते हैं वहां तक इसके द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने का अर्थ है- चित्त के द्वारा श्वास के स्पन्दनों को देखना । वृत्ति श्वास-प्रेक्षा जैसे दीर्घ श्वास-प्रेक्षा प्रेक्षा-ध्यान का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, वैसे ही समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा भी उसका महत्त्वपूर्ण सूत्र है । बायें नथुने से श्वास Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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