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________________ १८ प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग नाडी-तंत्र की प्राण-शक्ति (Nervous energy) को विकसित करना आवश्यक है। हमारी केन्द्रीय नाडी-तंत्र का मुख्य स्थान है-सुषुम्ना (Spinal Cord) | सुषुम्ना के नीचे का छोर-शक्ति-केन्द्र ऊर्जा या प्राणशक्ति का मुख्य केन्द्र है। अन्तर्यात्रा में चित्त को शक्ति केन्द्र से सुषुम्ना के मार्ग से ज्ञान-केन्द्र तक ले जाना होता है। चेतना की इस अन्तर्यात्रा से ऊर्जा का प्रवाह या प्राण की गति ऊर्ध्वगामी होती है। इस यात्रा की अनेक आवृत्तियों से नाड़ी-तंत्र की प्राण-शक्ति विकसित होती है जो ध्यानाभ्यास के लिए आवश्यक है। हमारे चैतन्य का, ज्ञान का केन्द्र है-नाड़ी संस्थान। यह समूचे शरीर में व्याप्त है। किन्तु पृष्ठरज्जु के नीचले सिरे में मस्तिष्क तक का स्थान चैतन्य का मूल केन्द्र है। आत्मा की अभिव्यक्ति का यही स्थान है। यही चित्त का स्थान है। यही मन का और इन्द्रियों का स्थान है। संवेदन, प्रतिसंवेदन, ज्ञान-सारे यहीं से प्रसारित होते हैं। शक्ति का भी यही स्थान है। ज्ञानवाही और क्रियावाही तंतुओं का यही केन्द्र स्थान है। केवल मनुष्य ही ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी कर सकता है। केवल दिशा का ही परिवर्तन हुआ कि जो शक्ति नीचे की ओर जाती थी वह ऊपर की ओर जाने लगती है। इतना सा ही अन्तर पड़ता है। मस्तिष्क की ऊर्जा का ऊपर जाना अध्यात्म जगत् में प्रवेश करना है। कामकेन्द्र की ऊर्जा का ऊपर जाना अध्यात्म जगत् में प्रवेश करना है। ऊर्जा के नीचे जाने से भौतिक सुख की अनुभूति होती है। ऊर्जा के ऊपर जाने से अध्यात्म-सुख की अनुभूति होती है। यह केवल दिशा-परिवर्तन का परिणाम है। पृष्ठरज्जु में बह रही, सदा सुषुम्ना शांत। ज्ञान-केन्द्र ऊपर सुखद, नीचे शक्ति नितांत।। शक्ति केन्द्र के पास है, कुंडलिनी का स्थान। तेजोलेश्या लब्धि या, तैजस-तन अभिधान ।। सुप्त और जागृत उभय, कुंडलिनी के रूप। योगरसिक नर समझते, इसका सही स्वरूप।। कुंडलिनी की साधना, बन जाती है अभिशाप। उचित मार्ग-दर्शन बिना, मिलता है सन्ताप ।। इसको जो नर साधता, लगती दीर्घ समाधि । वृद्धि रुके नख केश की, विगलित आदि-व्याधि ।। द्विविध लब्धि तेजोमयी, विपुल और संक्षिप्त। सुप्त शक्ति संक्षिप्त है. विपुल तेज से दीप्त ।। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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