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________________ प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग १६ । विचारों को रोकना एकाग्रता या ध्यान कुछ भी कह दीजिए। एकाग्रता में विचारों को नहीं होता अपितु अप्रयत्न का प्रयत्न होता है। प्रयत्न से मन और भी चंचल होता है। एकाग्रता तब होती है, जब मन निर्मल होता है। एकाग्रता के निर्मलता नहीं होती और बिना निर्मलता के एकाग्रता नहीं होती। तब प्रश्न आता है, क्या करना चाहिए? अपने आपको देखना चाहिए। अपना दर्शन करो और अपने आपको समझो। अधिकांश लोग अपने आपको नहीं पहचानते। धनवान और गरीब, वृद्ध और युवक, पुरुष और स्त्री-सबका एक ही प्रश्न आता है कि मन की अशांति कैसे मिटे ? मन अशांत नहीं है, वह ज्ञान का माध्यम है। अज्ञानवश हम अशांति का उसमें आरोप कर देते हैं। फूल में गंध है। हवा से वह बहुत दूर तक फैल जाती है। क्या गंध चंचल है? नहीं, हवा के संयोग से गंध का फैलाव हो जाता है। वैसे ही मन राग के रथ पर चढ़कर फैलता है। यदि मन में राग या आसक्ति नहीं है, तो मन चंचल नहीं होता। ___ क्षण भर भी प्रमाद मत करो।' यह उपदेश-गाथा है। पर अभ्यास की कुशलता के बिना कैसे संभव है कि व्यक्ति क्षण भर भी प्रमाद न करे। मन इतना चंचल और मोह-ग्रस्त है कि मनुष्य क्षण भर भी अप्रमत्त नहीं रह पाता। वह अप्रमाद की साधना क्या है? अप्रमाद के आलम्बन क्या है, जिनके सहारे कोई भी व्यक्ति अप्रमत्त रह सकता है? प्रेक्षा-ध्यान अप्रमाद की साधना है जिसके मुख्यतः दस अंग हैं१. कायोत्सर्ग ६. लेश्या-ध्यान (रंग ध्यान) २. अन्तर्यात्रा ७. भावना ३. श्वास-प्रेक्षा ८. अनुप्रेक्षा ४. शरीर-प्रेक्षा ६. विचार-प्रेक्षा और समता ५. चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा १०. संयम कायोत्सर्ग __ शरीर की चंचलता, वाणी का प्रयोग और मन की क्रिया-इन सब को एक शब्द में योग कहा जाता है। ध्यान का अर्थ है-योग का । प्रवृत्तियां तीन हैं और तीनों का निरोध करना है। फलतः ध्यान के ना प्रकार हो जाते हैं-कायिक ध्यान, वाचिक ध्यान और मानसिक ध्यान कायिक ध्यान ही कायोत्सर्ग है। इसे काय-गप्ति, काय-संवर, काय-विन काय-व्युत्सर्ग और काय-प्रतिसंलीनता भी कहा जाता है। लापरत य-विवेक. Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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