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________________ प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग पसली-पिञ्जर में गूंजती हुई फुफ्फुस के वायु-प्रकोष्ठ पर पहुंचती है। इन प्रकंपनों से फुफ्फुसीय कोशिकाएं सक्रिय एवं सप्राण होकर ऑक्सीजन-कार्बन-डाइऑक्साइड के विनिमय को पूरी क्षमता के साथ सम्पादित करती है। इस ध्वनि का अन्तिम गूंजन मस्तिष्क में होता हुआ कपालीय तंत्रिकाओं को झंकृत करता है तथा उनका कायाकल्प करता है। एक इटालियन वैज्ञानिक डॉ. लेसर लसारियो ने " ध्वनि-जनित तरंगों के मानव शरीर पर होने वाले प्रभावों" का २५ वर्ष तक वैज्ञानिक अध्ययन करने के बाद यह प्रमाणित किया कि १४ १. उच्छ्वसन के साथ शब्द-स्वरों के उच्चारण द्वारा उत्पन्न प्रकंपनों से भीतरी अवयवों की मालिश (Massage) हो जाती है। २. भीतर के ऊतकों और तंत्रिका-कोशिकाओं की गहराई तक प्रकंपन पहुंचते हैं। ३. अवयवों और ऊतकों में रक्त संचार निर्बाध बनता है और उन्हें प्रचुर मात्रा में रक्त की आपूर्ति होने से प्राण-शक्ति दीप्त होती है। ध्वनि-प्रकंपनों से मानसिक प्रभाव ध्वनि तरंगों से मानसिक प्रभाव शारीरिक प्रभावों की तुलना में और अधिक महत्त्व रखते हैं । यह तो एक सर्वविदित तथ्य है कि संगीत - लहरियों का मनुष्य एवं अन्यं प्राणियों के भावों पर अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ता है। उपयुक्त संगीत के माध्यम से इच्छित परिवर्तन भावधाराओं में लाया जा सकता है। अब प्रयोगों के द्वारा यह सिद्ध कर लिया गया है कि ध्वनि द्वारा किए जाने वाले आंतरिक प्रकंपन-मर्दन के प्रभाव से न केवल मांसपेशियों का शिथिलीकरण किया जा सकता है अपितु ग्लानि, विषाद और हीन भावना जैसे मनोदशाओं को भी दूर किया जा सकता है। जब हम मौन होते हैं, तब भी बहुत बार हम मानसिक वाक्य रचना द्वारा अपने स्वर-यंत्र को बहुत व्यस्त रखते हैं तथा इस प्रकार अपनी स्नायविक ऊर्जा का अधिक मात्रा में अपव्यय करते रहते हैं । अर्हं ध्वनि के उच्चारण के समय हमारी मानसिक वाक्य-रचना की क्रिया समाप्त हो जाती है और इस प्रकार उस उपेक्षा से व्यर्थ ऊर्जा-व्यय से हम अपने आप को बचा लेते हैं। अर्हं ध्वनि की तरंगों के द्वारा हम शामक विद्युत् चुम्बकीय तरंगों को उत्पन्न करते हैं, जो लगातार उसी आवृत्ति वाले अनुनादी स्पन्दनों को Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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