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________________ १६१ आसन पाणायाम और मुद्रा इसी प्रकार पौधे और पशुओं की मृत्यु के समय लिए गए चित्रों से पता लगा कि जैसे-जैसे मृत्यु हुई, वैसे-वैसे जीवाणु शरीर से लिपटे और चिनगारिया अंतरिक्ष में विलीन होती दिखाई दीं। स्वल्प समय पश्चात एक क्षण ऐसा आया, जब पौधे और पशु-शरीर से कोई प्रकाश नहीं निकला। इस प्रकाश का आधार प्राण-ऊर्जा है। हृदय आदि बन्द हो जाने से व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती, उसकी मृत्यु आयुष्य-प्राण के विलीन होने से ही होती है। श्वास-इन्द्रिय आदि का प्राण वियोग होने के बाद भी व्यक्ति जीवित हो उठता है। उसका कारण प्राण की स्थिति ही है। चैकोस्लोवाकिया के प्रसिद्ध शिल्पी ब्रेतिस्लाव काफका का मत है कि जीवित प्राणी को एक प्रकार का प्रभा-मण्डल घेरे रहता है। यह प्रभा-मण्डल मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सूक्ष्म और संवेदनशील तत्त्व है, जो टेलीपैथी, दूरश्रवण, दूरदर्शन आदि क्रियाओं में कार्य करता है। इसके समाप्त होते ही मृत्यु घटित हो जाती है। प्राणवायु और प्राण में अन्तर शब्द-संकेत की अपनी कठिनाई है। कई शब्द अर्थ की अभिव्यक्ति भिन्न रखते हुए भी एक रूप में प्रयुक्त होते हैं। प्राण शब्द भी इसका अपवाद नहीं है। प्राण को ऊर्जा, शक्ति आदि अनेक रूपों में समझा जाता है। योग-ग्रथों में प्राण, अपान आदि पांचों वायुओं को भी प्राण कह देते हैं, परन्तु प्राण और प्राणवायु एक नहीं है। प्राण शक्ति है जो पांचों वायुओं के रूप में शरीर के विभिन्न अंगों में कार्य करती है; इसलिए प्राण शक्ति को भी प्राणवायु समझा जाने लगा है। प्राण सूक्ष्म ऊर्जा है, जबकि प्राणवायु स्थूल तत्त्व है। प्राणवायु सभी अंगों में काम आती है; इसलिए प्राणवायु को प्रधानता मिलना अस्वाभाविक नहीं है। प्राणशक्ति जीवन का आधारभूत तत्त्व है। अतः प्राण और प्राणवायु को एक नहीं समझना चाहिए। श्वास-प्रश्वास की क्रिया के अवरुद्ध हो जाने को सामान्य भाषा में प्राण निकल गया कहा जाता है, किन्तु श्वास-प्रश्वास और प्राण में मौलिक अन्तर है। श्वास-प्रश्वास जब तक जीवित रहता है, चलता है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि श्वास और प्रश्वास ही प्राण है। प्राण जीवन-शक्ति है, जो सम्पूर्ण शरीर में परिव्याप्त है। वह सूक्ष्म शक्ति शरीर के प्रत्येक अंग एवं स्नायुओं में परिभ्रमण करती है, जबकि श्वास-प्रश्वास केवल फेफड़ों में जाता है, जहां रक्त के शोधन में सहयोगी बनता है। अतः प्राण श्वास-प्रश्वास का पर्याय नहीं हो सकता है। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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