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________________ आसन प्राणायाम और मुद्रा २. स्थित- बैठकर किए जाने वाले आसन । ३. शयन- लेटकर किए जाने वाले आसन । उत्थित आसनों में वीर-वंदन, समपाद, एकपाद, गृधोड्डीन, त्रिकोणासन, ताड़ासन आदि हैं। स्थित आसनों में पद्मासन आदि हैं। शयन आसनों में दण्डशयन आदि हैं । १७५ आसन-प्राणायाम भारतीय चिन्तन में सभी विचारधाराओं में हैं वैदिक विचारधारा - हठयोग प्रदीपिका में आसनों के बारे में लिखा हैहठस्य प्रथमांगत्वादासनं पूर्वमुच्यते । कुर्यात्तदासनं स्थैर्यमारोग्यं चांगलाघवम् ।।१७।। इसका अर्थ इस प्रकार है हठयोग का प्रथम अंग आसन का वर्णन करते हुए कहा गया है कि आसन में स्थिरता इसलिए करें कि मन की चंचलता जो रजोगुण का धर्म है उसका आसन नाश करता है। यानी चित्त का विक्षेप नहीं होता । महर्षि पतंजलि ने रोग को भी चित्त का विक्षेप कहा है । व्याधि-उत्थान- संशय-प्रमादआलस्य-अविरति-भ्रांति दर्श अलब्धभूमि (पूर्वोक्त भूमियों का न मिलना), अनवस्थित (चंचलता) ये चित्त के विक्षेप रूप विघ्न हैं । अंगों के लाघव से ये सभी विघ्न जल्दी नजदीक नहीं आते। इसी हठयोग प्रदीपिका में प्राणायाम के बारे में लिखा है चले वातं चले चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत् । योगी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायु निरीधयेत् । । २ ।। अर्थ- प्राणवायु के चलायमान होने से चित्त भी चलायमान हो जाता है । प्राणवायु के निश्चल होने पर चित्त भी निश्चल होता है। प्राणवायु और चित्त दोनों के निश्चल होने पर योगी स्थाणु रूप को प्राप्त होता है यानी दीर्घकाल तक जीता है। इसलिए योगियों को दीर्घकाल तक श्वास पर अधिकार प्राप्त करने का अभ्यास करना चाहिए । घेरण्ड ऋषि ने आसनों के बारे में लिखा है आसनानि समस्तानि यावन्तो जीव-जन्तवः । चतुरशीति लक्षानि शिवे नाभिहितानि च ।।१।। तेषां मध्ये विशिष्टानि षोडशोनं शतं कृतम् । तेषां मध्ये मर्त्यलोके द्वात्रिंशदासनं शुभम् ।।२।। अर्थ-महर्षि घेरण्ड ने कहा है-संसार में जितने जीवों की योनियां हैं Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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