SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आसन, प्राणायाम और मुद्रा १७३ आयुर्विज्ञान ने एक नवीन शाखा का उदभव किया जिसे 'फिजियोथेरापी' कहा जाता है। आज विश्व में प्राय: सभी रोगों में आसन के महत्त्व को स्वीकार किया गया है और वे अपने प्रचार-तन्त्र द्वारा आसनों का खुल कर प्रचार कर रहे हैं। आध्यात्मिक दृष्टिकोण अध्यात्म चेतना की अन्तरंग अभिव्यक्ति है। व्यक्ति अपनी अनुभूतियों से गुजर कर आनन्द को उपलब्ध करता है। साधना की विविध परम्पराओं ने उसके लिए व्यक्ति का मार्गदर्शन किया है। विज्ञान ने मनुष्य को जहां सुख-सुविधा के लिए साधन दिए हैं, वहां मानसिक तनाव और शारीरिक अस्वास्थ्य का अभिशाप भी दिया है। जो देश जितना आधुनिक और यन्त्रों से सुसज्जित हुआ, वह देश स्नायविक तनाव से ग्रसित और मानसिक व शारीरिक दृष्टि से रुग्ण बना। हिन्दुस्तान अभी भी पूर्ण आधुनिक नहीं है फिर भी ज्यों-ज्यों यंत्रों के साधनों का विकास यहां हो रहा है, मानसिक तनावों के दोष विकसित होते जा रहे हैं। व्यक्ति चिन्ता, भावुकता, परेशानियों से घिरता जा रहा है, जिससे उसका जीवन तनाव-ग्रस्त होने लगता है। तनाव से ग्रसित व्यक्ति केवल मानसिक दृष्टि से ही पीड़ित नहीं होता, बल्कि शारीरिक दृष्टि से भी रुग्ण व पीड़ित होता है। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के उपलब्ध होने का सरल और सहज मार्ग योगासन है। योगासन जहां साधना की सिद्धि में सहयोगी बनते हैं, वहां शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक प्रसन्नता के लिए वरदान बनते हैं। योगासनों से सुख-दुःख, लाभ-अलाभ आदि द्वन्द्वों का अभिघात होता है। कष्ट-सहिष्णुता एवं माध्यस्थ्यवृत्ति भी विकसित होने लगती है। आसन शरीर के अवयवों, मांसपेशियों, स्नायु-मण्डल को सक्रिय, शक्तिशाली एवं सन्तुलित बनाने के लिए उपयोगी है। आसनों के असंख्य प्रकार हैं। जीवों की जितनी योनियां हैं, उनके शरीर के जो आकार हैं, उन सबको आसन की संज्ञा दी जा सकती है। शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक शान्ति की दृष्टि से उपयोगी आसनों की विधि एवं चर्या ही यहां उपयुक्त रहेगी। योगासन प्रारम्भ करने से पूर्व कुछ आवश्यक संकेत मननीय हैं, जिनसे योगासन का पूर्ण लाभ उठाया जा सकता है। योगासन का अभ्यास एकान्त, शान्त व खुली जगह में करें। आसन का समय प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व एवं सूर्योदय के एक घण्टा पश्चात् Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy