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:८: आसन, प्राणायाम और मुद्रा
वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रेक्षाध्यान में आसन, प्राणायाम, मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जब तक आसन नहीं सधता, मुद्रा ठीक नहीं होती-ध्यान की पूर्व तैयारी ही नहीं हो पाती। बिना आसन साधे ध्यान में बैठ जाने वाले का शरीर स्थिर नहीं रह पाता जो कायोत्सर्ग की पहली शर्त है। शरीर का शिथिलीकरण नहीं होता तो कायोत्सर्ग नहीं होता है। ये दोनों हुए बिना चैतन्य के प्रति जागरूकता आ नहीं सकती क्यों चित्त शरीर की अस्थिरता और चंचलता में ही अटका रह जाता है। प्राणायाम श्वास-प्रेक्षा का आधार है। मुद्राओं का भावों के साथ सीधा सम्बन्ध है। जैसे भाव वैसी मुद्रा और जैसी मुद्रा वैसा ही भाव का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। इसलिए ध्यान के लिए आसन, मुद्रा, प्राणायाम और यौगिक क्रियाएं विज्ञान-सम्मत अनिवार्यताएं हैं। अस्थि-तन्त्र
__ हमारे शरीर का हड्डियों का ढांचा सारे शरीर का बोझ उठाये हुए है। अस्थियों में जगह-जगह जोड़ हैं जिनसे हम शरीर के उस भाग को आसानी से मोड़ सकते हैं। जिस तरह दरवाजे को कई दिन न खोला जाए तो उसके कब्जे को जंग पकड़ लेता है और दरवाजा आसानी से नहीं खुलता, इसी तरह शरीर के जोड़ों को शुरू से ही आसन आदि के द्वारा स्वस्थ नहीं रखा जाए, तो वे जल्दी ही कड़े होकर दुखने लग जाते हैं। जोड़ों का दर्द आज के विश्व की एक बड़ी बीमारी है। आसन करने से जोड़ स्वस्थ बने रहते हैं और वहां शरीर से ऐसे स्राव पहुंचते हैं जिनसे उनके मुड़ने में मदद मिलती है। हड्डियां स्वस्थ बनी रहने से और मजबूत बनी रहने से हमारी रोग-प्रतिरोधक शक्ति भी बनी रहती है क्योंकि अनेक आवश्यक तत्त्व शरीर को हमारी अस्थि-मज्जा से प्राप्त होते हैं।
मांसपेशियां-हमारी शरीर में अस्थितन्त्र तथा अन्य अवयवों की
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