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________________ प्रक्षाध्यान : आधार और स्वरूप अन्तर् जागरणा-जगत्, में मेरा संचार । यह द्वितीय उपसंपदा, करूं सहज स्वीकार ।। भीतर में रमता रह, जागरूकता साथ। वह तृतीय उपसंपदा, आगम में आख्यात ।। साधना प्रारम्भ करने से पूर्व सभी साधक सुखासन में बैठ बद्धांजलि होकर प्रेक्षा-ध्यान की उपसम्पदा स्वीकार करते हैं। शरीर को शिथिल और मन को तनाव-मुक्त कर निम्न सूत्रों का उच्चारण करते हैं "अब्भुडिओमि आराहणाए।" मैं प्रेक्षा-ध्यान की आराधना के लिए उपस्थित हुआ हूं। "मग्गं उवसंपज्जामि।" मैं अध्यात्म-साधना का मार्ग स्वीकार करता हूं। "सम्मत्तं उवसंपज्जामि।" । मैं अन्तर्दर्शन की उपसम्पदा स्वीकार करता हूं। "संजमं उवसंपज्जामि।" मैं आध्यात्मिक अनुभव की उपसम्पदा स्वीकार करता हूं। यह प्रेक्षा-ध्यान की उपसम्पदा है। उपसंपदा की चर्या इस चर्या के ५ सूत्र हैं : १. भावक्रिया, २. प्रतिक्रिया-विरति, ३. मैत्री, ४. मितभाषण, ५. मिताहार। मित्तभोजन मितभाषिता, मैत्री का आधार। प्रतिक्रिया से शून्य हो क्रिया स्वयं निर्भार ।। सदा साधना में रहे, भावक्रिया उदार। पांचों ही ये सूत्र हैं, सच्चे पहरेदार ।। १. भावक्रिया (वर्तमान क्षण की प्रेक्षा) . भावक्रिया के तीन अर्थ हैं १. वर्तमान में जीना। २. जानते हुए करना। ३. सतत अप्रमत्त रहना। जो वर्तमान क्षण का अनुभव करता है, वह सहज ही राग-द्वेष से बच जाता है। राग-द्वेष-शून्य वर्तमान क्षण को देखने वाला नए कर्म-संस्कार के बन्ध का निरोध करता है। वर्तमान को जानना और वर्तमान में जीना ही भावक्रिया है। यांत्रिक Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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