SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुपेक्षा अलग नहीं कर सकते, कभी नहीं कर सकते। जिसके मन में बीमार होने की चाह नहीं होती, वह बीमार नहीं होता। जिस व्यक्ति में मानसिक उलझनों में जाने की चाह नहीं होती, वह मानसिक उलझन में नहीं जाता। मानसिक उलझन इसलिए होती है कि हमारे भीतर किसी को प्रिय मानने की चाह है और किसी को अप्रिय मानने की चाह है, तब अप्रियता का संवेदन रहे और मानसिक उलझन न रहे, यह कभी नहीं हो सकता। हम मानसिक तनाव में, मानसिक उलझन में, प्रियता और अप्रियता के संवेदन में भी कोई अन्तर नहीं कर सकते। उनके बीच में कोई भेद-रेखा नहीं खींच सकते। जो क्रोधी होना नहीं चाहता, क्या वह कभी क्रोधी हो सकता है ? क्रोध उसी व्यक्ति को आएगा, जो क्रोधी होना चाहता है। सबसे बड़ी बीमारी है चाह, अतृप्ति, आकांक्षा। सारी बीमारियों की जड़ में है आकांक्षा, अविरति। यदि आकांक्षा मिट जाए, अविरति समाप्त हो जाए, तो फिर न कषाय होगा और न कोई बीमारी होगी। हम इस सचाई को देखें, इस सचाई को जानें और जो इस सचाई को जानते हैं, उनके सामने यह प्रश्न जटिल नहीं बनता कि चुनाव कैसा होना चहिए? ___ व्याधि, आधि और उपाधि से पीड़ित होने का चुनाव कौन करेगा? किन्तु आदमी यह चुनाव करता है। वह इसलिए करता है कि उसके भीतर चाह मौजूद है। परन्तु जब मनुष्य को स्वतंत्रता है और वह चुनाव करने में सक्षम है, तो व्याधि, आधि और उपाधि से दूर हटकर समाधि का चुनाव करता है, तब उसकी सारी जीवन की दिशा बदल जाती है। समाधि हमारे जीवन की दिशा है। समाधि हमारे जीवन का मार्ग है। यह जीवन की एक पद्धति है। जो इस जीवन की पद्धति को समझ लेता है, जीवन की कला को समझ लेता है, जीवन के विज्ञान को समझ लेता है, वह शांत और सहज जीवन जीता है। समाधि की साधना समग्र जीवन की साधना है। प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा द्वारा जैसे-जैसे देखने और जनने का-चैतन्य-केन्द्रों में होने वाली प्रकंपनों को जानने का अभ्यास बढ़ता है, वैसे-वैसे राग-द्वेषयुक्त क्षण जीने का विकास होता है, साधना बढ़ती है, अनुभव करने का अभ्यास बढ़ता है। साधक जीवन-यात्रा को चलाते हुए भी, व्यवहार की भूमिका पर करणीय कार्य करते हुए भी समाधि को प्राप्त कर अच्छे साधक का जीवन जी सकता है। अनुप्रेक्षा की प्रक्रिया को समझ लेने पर ध्यान की बहुत बड़ी प्रक्रिया हस्तगत हो जाती है। हमारे हाथ में एक बहुत बड़ा आलंबन आ जाता है। . Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy