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________________ अनुपेक्षा बाबदार मधर बना देता है भोगने वाला दुःख पाता है। अनुप्रेक्षा का साधक १६३ मानसिक विकृतियों से मुक्त होकर स्वस्थ चिन्तन करने वाला, स्वस्थ व्यक्तित्व वाला बन जाता है। प्रश्न हो सकता है कि "अपने आपको अकेला अनुभव करने वाला सक्ति क्या व्यवहार से च्युत नहीं हो जाएगा ?" उत्तर है-नहीं होगा। व्यक्ति अनुप्रेक्षा का यानी स्वस्थ चिन्तन का अनुसरण करता है, वह कभी असामाजिक और अव्यावहारिक नहीं होगा, प्रत्युत व्यवहार में जितना परिष्कार आता है, समाज में जितना सुधार, क्रांति और भलाई आती है, वह ऐसे व्यक्तियों द्वारा ही आ सकती है। अनुप्रेक्षा के द्वारा जिन आध्यात्मिक सचाइयों का अनुभव किया जाता है, वे यदि सामाजिक व्यक्ति के जीवन में चरितार्थ हो जाएं, तो समाज का चित्र नया हो जाएगा। आध्यात्मिक भूमिका पर जिस समाज की संरचना होगी और इन सचाइयों के आधार पर जिस समाज का ढांचा खड़ा होगा, वह समाज सचमुच ही व्यवस्थित, शांतिप्रिय और मैत्रीप्रधान होगा। सहिष्णुता सहन करना सामान्य बात नहीं है। इसके लिए पुष्ट आलम्बन चाहिए। किसी आलंबन के आधार पर ही सहिष्णुता का विकास किया जा सकता है। सामान्यतः क्रोध का उत्तर क्रोध से, उत्तेजना का उत्तेजना से दिया जाता है। कोई क्रिया हो और सामने वाला प्रतिक्रिया न करे, ऐसा संभव नहीं लगता। किन्तु अनुप्रेक्षा के आलंबन के सहारे इस स्थिति को सहा जा सकता है, कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। आवेशजन्य स्थितियों को सहने के लिए और मन को शांत और संतुलित रखने के लिए अनुप्रेक्षा के माध्यम से सहिष्णुता का विकास किया जा सकता है। समाधि की उपलब्धि अनुप्रेक्षा का एक महत्त्वपूर्ण निष्पत्ति है समाधि। जीवन का सबसे बड़ा विज्ञान है समाधि। जिस व्यक्ति को समाधि उपलब्ध हो जाती है, उसकी दूसरी सारी विशेषताएं नीचे रह जाती हैं। दूसरी-दूसरी विशेषताओं से संपन्न व्यक्ति अत्राण और असहाय देखे जाते हैं। किन्तु जिस व्यक्ति को समाधि उपलब्ध है, वह कभी अत्राण और असहाय नहीं होता। वह कभी अशरण और दुःखी नहीं रहता। समाधि की उपलब्धि जब होती है, तब Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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