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________________ १६१ अकेला नहीं हूं। मेरे साथ अनेक सम्बन्ध जुड़े हुए हैं। मेरे साथ परिवार का, गांव का, राष्ट्र का सम्बन्ध जुडा हुआ है। मैं इन सूक्ष्म धागों से बंधा हुआ है। एक ओर व्यवहार की भूमिका पर आदमी अपने आपको हजारों-हजारों धागों से बन्धा अनुभव करे और दूसरी ओर अध्यात्म की भूमिका पर उन धागों से मुक्त अनुभव करे। दोनों स्थितियां साथ-साथ चलें। दोनों का सामंजस्य हो। व्यवहार की दृष्टि भी चले और निश्चय की दृष्टि भी, प्रेक्षा की दृष्टि भी चले। जो सामाजिक जीवन जीता है, उसे इन धागों से बंधा रहना पड़ता है। किन्तु केवल इसी में रह जाए और आध्यात्मिक चेतना को न जगा पाए. तो मूर्छा इतनी सघन हो जाती है और वे धागे मजबूत रस्से बन जाते हैं, फिर उनसे छूटना सरल नहीं होता। ___ एकत्व अनुप्रेक्षा के द्वारा हम अपनी चेतना को जगाएं और अपने आपमें यह अनुभव करें कि-"मैं अकेला हूं। जब यह सच्चाई अनुभव के स्तर पर घटित हो जाती है तब व्यक्ति का जीवन संतुलित हो जाता है। आदमी व्यवहारों तथा सम्बन्धों को सच्चाई मानकर जीता जा रहा है। जब वह इन सच्चाइयों का अनुभव कर लेता है, तब व्यवहार नीचे रह जाते हैं और सच्चाई उजागर हो जाती है। अनुप्रेक्षा का प्रयोग केवल सुनने का प्रयोग नहीं है, करने का प्रयोग है। जब हम प्रयोग करते हैं, तब वास्तविकता गहरे में अवचेतन मन तक पहुंच जाती है। इसलिए अनुप्रेक्षा का प्रयोग जरूरी है। साधक प्रयोग के अभ्यास में विश्वास करे। जो प्रयोग करता है, अभ्यास से गुजरता है, उसको अवश्य अनुभव होता है। जो बात अनुभव के स्तर पर आती है, वह स्थायी और शाश्वत उपयोगी बन जाती है। अभ्यास निरन्तर चले, असंभव संभव लगने लगेगा। निष्पत्तियां चित्त शुद्धि की प्रक्रिया अनुप्रेक्षाएं अनेक हैं। जो व्यक्ति प्रेक्षा के साथ-साथ अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास करता है, उसके चित्त पर कोई मूर्छा नहीं जमती, मैल नहीं जमता। इसलिए प्रेक्षाध्यान करने वाले साधकों को चित्तशुद्धि के लिए अनप्रेक्षाओं का अभ्यास करना जरूरी है। प्रेक्षाध्यान साधना-पद्धति में जहां ध्यान का महत्त्व है, वहां अनुप्रेक्षा का भी महत्त्व है-इस वास्तविकता को बराबर मानते चलें तो ध्यान के साथ-साथ हमारे चित्त की निर्मलता Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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