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________________ अनुप्रेक्षा १५५ एक आदमी आज भी जीवित है, जो प्रति शुक्रवार को क्रॉस पर करता है। उसके दोनों हाथों में घाव हो जाते हैं। रक्त बहने लग जाता है। उदय से भी रक्त बहने लगता है। शुक्रवार को ही ऐसा होता है। यह भावनात्मक परिवर्तन है। वह व्यक्ति ईसा मसीह का संकल्प करता है और ऐसा घटित हो जाता है। _पैर में बिवाई फटती है, पीड़ा होती है। अभी बिवाई फटने का मौसम तो नहीं है किन्तु आप भावनात्मक प्रयोग करें। बिवाई फटे या न फटे, दर्द प्रारम्भ हो जाएगा। यदि भवना से दर्द हो सकता है, तो भावना से दर्द मिट भी सकता है। दोनों बातें घटित हो सकती हैं। भावना ___ 'कंटकात् कंटकमुद्धरेत्'-कांटे से कांटा निकालने की नीति साधना के क्षेत्र में भी लागू होती है। चित्त को वासनाओं से मुक्त करना साधक का लक्ष्य होता है, पर पहले ही चरण में दीर्घकालीन वासनाओं को एक साथ निर्मूल नहीं किया जा सकता। उन्हें निरस्त करने के लिए नई वासनाओं की सृष्टि करनी होती है। वे नई वासनाएं यथार्थपरक होती हैं इसलिए उसका असत् से संबंधित वासनाओं पर दबाव पड़ता है और वे उनसे अभिभूत हो जाती हैं। वासना का ही दूसरा नाम भावना है। शास्त्रीयज्ञान या शब्दज्ञान का जो सहारा लिया जाता है, वह वासना है। इसे भावना, जप, धारणा, संस्कार, अनुप्रेक्षा और अर्थचिंता भी कहा जाता है और ये सब स्वाध्याय के ही प्रकार हैं। जैन साधना-पद्धति में 'भावनायोग' शब्द का व्यवहार हुआ है। भावना मन आत्मा या सत्य से युक्त होता है, इसलिए यह योग है। भावना में ज्ञान और अभ्यास-इन दोनों के लिए अवकाश है। __ भावना का अर्थ है-सविषय ध्यान। यही इसकी परिभाषा है। जब आपके मन में कोई विषय है, आपने कोई ध्येय चुना है, आप सविषय ध्यान कर रहे हैं, यह है भावना। भावना, सविषय ध्यान और जप में कोई अन्तर नहीं है। तीनों एक हैं। अपनी उपयोगिता के आधार पर भिन्न-भिन्न नामों का चुनाव हुआ है। तात्पर्य में कोई अन्तर नहीं है। जप का अर्थ यह है कि जो जप्य है, जिसका जप करना है, उस जप्य वस्तु के प्रति व्यक्ति का तन्मय और एकाग्र हो जाना। भावना का अर्थ है-भाव्य व्यक्ति या वस्तु के प्रति तन्मय और एकाग्र हो जाना। धारणा का अर्थ भी यही है। जिसकी Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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