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________________ :१४७ अनुपेक्षा holism) ज्यादा निरापद है। इससे रोगी किसी का भी गलाम नहीं बनता और अपने व्यक्तित्व की सुरक्षा करने में सक्षम रहता है। जब हमारा दृष्टिकोण गलत होता है, तो हमारी इच्छाएं भी अनंत हो जाती हैं। जब भावना या अनुप्रेक्षा के द्वारा दृष्टिकोण बदल जाता है, तो राए समाप्त हो जाती हैं। “ये भोग हमें सुख नहीं देते, बल्कि बंधन में जकड़ने वाले हैं। जिस विषयासक्ति (या संग) को सार समझते थे और जिसके लिए इतने बेचैन थे, वह सार नहीं, बल्कि असार है, क्योंकि वह हमारे बन्धन और अतृप्ति का कारण है।"-जब इस 'संसार भावना' की सच्चाई को हम जान लेते हैं और यह भावना हमारे मन और मस्तिष्क में भली-भांति छा जाती है, तब सारी भोग की इच्छाएं स्वतः निरस्त हो जाती हैं और सिग्मण्ड फ्रायड का वह तर्क भी समाप्त हो जाता है जिसके चलते दमित और अतृप्त भोगेच्छाएं मनोरोग का कारण बनती हैं। भावना या अनुप्रेक्षा का यह एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक आधार है। अनुप्रेक्षा में पहले शरीर को स्थिर, शिथिल और जागरूक किया जाता है, तब किसी भी भावना को मन की गहराई तक पहुंचा दिया जाता है। पुरानी मिथ्या भावनाओं का निरसन हो जाता है और नई सम्यक भावनाओं को बार-बार के अभ्यास से स्थाई भाव का रूप देकर चरित्र का अंग बना दिया जाता है। एक चिकित्सा पद्धति का नाम है-फेथ हीलिंग (Faith healing) यानि “आस्था द्वारा रोग-चिकित्सा"। यह बहुत प्राचीनकाल से लगातार अब तक प्रचलित है। आधुनिक सभ्यता वाले पश्चिमी देशों में जहां अन्य चिकित्सा-पद्धतियां चरम विकास पर पहुंची हैं, वहां पर भी “फेथ हीलिंग" की पद्धति प्रचलित है। प्रश्न है-आस्था घनीभूत कैसे हो? हमारा अपने “ईश्वर" यानी आंतरिक शक्तियों के साथ संपर्क स्थापित कैसे हो? जब व्यक्ति में इस आस्था का निर्माण हो जाता है कि शारीरिक या मानसिक बीमारियां मात्र एक संयोग है और जो संयोग होता है उसका निश्चित वियोग होता है, “मैं दुःख भोगने के लिए नहीं जन्मा हूं", तब वह बाहरी साधनों का सहारा लिए बिना रोग और दुःख से मुक्त हो जाता है। उसके दुःख का संवेदन समाप्त हो जाता है। यह 'आस्था के द्वारा रोग-चिकित्सा' और कुछ नहीं, वरन् ‘स्वयं सूचना' या आत्म-सम्मोहन के द्वारा भावना का दृढीकरण है। - भावना के प्रयोगों के उपचारात्मक मूल्य को आधुनिक आयुर्विज्ञान के चिकित्सकों द्वारा भी स्वीकृत किया गया है। डॉ. स्टीफन ब्लेक ने Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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