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________________ लेश्या ध्यान १४३ पीले रंग की क्षमता है मन को प्रसन्न करना, बुद्धि का विकास करना, दर्शन की शक्ति को बढ़ाना, मस्तिष्क और नाड़ी संस्थान को सुदृढ़ करना, सक्रिय बनाना। यदि हम मस्तिष्क तथा चाक्षुष - केन्द्र पर पीले रंग का ध्यान करते हैं, तो ज्ञानतंतु विकसित होते हैं । जितेन्द्रियता जब हम चमकते हुए पीले रंग के परमाणुओं को आकर्षित करते हैं। तो जितेन्द्रिय होने की स्थिति निर्मित हो जाती है। हम जितेन्द्रिय हो सकते हैं। पद्म लेश्या का अभ्यास करने वाला व्यक्ति जितेन्द्रिय हो जाता है । कृष्ण और नील लेश्या में रहने वाला व्यक्ति अजितेन्द्रिय होता है। ये दोनों प्रकार के परमाणु एक दूसरे के विरोधी हैं। जब तक काले रंग के परमाणुओं का प्रभाव बना रहता है, तब तक हम जितेन्द्रिय नहीं हो सकते। जब पीले रंग के परमाणुओं से हमारा लेश्या - तंत्र और आभामण्डल सक्रिय होता है तब हमें जितेन्द्रिय होने की सुविधा मिल जाती है । शुक्ल- लेश्या का ध्यान : निष्पत्तियां शुक्ल लेश्या का रंग पूर्णिमा के चन्द्रमा जैसा श्वेत रंग है। श्वेत रंग पवित्रता, शांति, शुद्धि और निर्वाण का द्योतक है। तेजो लेश्या और पद्म- लेश्या के द्वारा बढ़ी हुई गर्मी को शुक्ल - लेश्या उपशांत कर देती है और निर्वाण घटित हो जाता है। शुक्ल लेश्या उत्तेजना, आवेग, आवेश, चिन्ता, तनाव, वासना, कषाय, क्रोध आदि को शांत कर पूर्ण शांति का अनुभव कराती है। आत्म-साक्षात्कार स्पन्दन साधक ऐसा न माने कि तेजस् लेश्या और पद्म लेश्या पकड़ में आ गए तो यात्रा सम्पन्न हो गई। इससे आगे की यात्रा अभी शेष है । इन्द्रिय-चेतना मनःस्थ चेतना और चित्त की चेतना वाले शरीर में एक ऐसा तत्त्व भी है जो इन चेतनाओं से परे है। उसका साक्षात्कार हमें इष्ट है। आत्म-साक्षात्कार ही लेश्या ध्यान का लक्ष्य है, जो शुक्ल-लेश्या के ध्यान से प्राप्त होता है। इस बिन्दु पर पहुंचकर ही हम भौतिक और आध्यात्मिक जगत् के अन्तर को समझ सकते हैं। आत्म-साक्षात्कार की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है- निर्विकल्प चेतना का निर्माण | Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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