SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या ध्यान १३३ क्यों ? प्रवृत्ति को छोड़कर निवृत्ति क्यों ? प्रश्न स्वाभाविक है। हम यदि प्रवृत्ति और निवृत्ति को ठीक से समझ लें तो प्रश्न समाहित हो सकता है I यदि तनिक भी भ्रांति हुई तो ध्यान के प्रति भी हम भ्रांत हो जाएंगे। प्रवृत्ति है जीवन की नैया को खेने के लिए जीवन की यात्रा को चलाने के लिए और निवृत्ति है जीवन की सच्चाई और सत्य को पाने के लिए। जो लोग केवल प्रवृत्ति करते हैं, वे जीवन की यात्रा को चला सकते हैं, किन्तु जीवन की सच्चाई को प्राप्त नहीं कर सकते । प्रवृत्ति हमारी जीवन-यात्रा का साधन है, साध्य नहीं । यदि जीवन में प्रवृत्ति और निवृत्ति का सम्यक् सन्तुलन नहीं होता, तो व्यक्ति प्रवृत्ति को साध्य मानने लग जाता है और जीवन में एक बहुत बड़ी भ्रांति आ जाती है। इस भ्रांति को मिटाने के लिए और सच्चाई को पाने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति ध्यान का अभ्यास करे । 1 चैतन्य की स्वतंत्र सत्ता का अनुभव विज्ञान का लक्ष्य भी सत्य को पाना है, जिसके लिए वह निरन्तर प्रयत्नशील है पर वैज्ञानिक खोजों के विषय केवल पदार्थ हैं, परमाणु हैं, चेतना की स्वतंत्र सत्ता उसका विषय नहीं है। विज्ञान ने पदार्थ पर बहुत खोजें की हैं और आज भी उसकी खोज चालू है । पदार्थ के अस्तित्व के कण-कण को छाना जा रहा है। विज्ञान की खोज उपकरणों, यंत्रों और अन्य भौतिक साधनों के माध्यम से हो रही है। इसलिए वह पदार्थ तक ही पहुंच पाएगी, आत्मा तक उसकी पहुंच नहीं हो सकती । चेतन सत्ता उसका विषय भी नहीं बनता। इसलिए वैज्ञानिक जगत ने चेतन की स्वतंत्र सत्ता को अब तक स्वीकार नहीं किया है। उस स्वीकार के कारण आज हमें ध्यान की उपयोगिता इतनी ही लगती है कि उससे तनाव कम होता है, शारीरिक स्वास्थ्य बना रहता है आदि । बस, ध्यान की उपयोगिता समाप्त। यह सच है कि ध्यान से स्नायविक, मानसिक और भावनात्मक तनाव कम होते हैं, स्वास्थ्य सुधरता है, रक्त चाप संतुलित होता है, किन्तु ध्यान का उद्देश्य केवल शरीर को पुष्ट और स्वस्थ करने का नहीं है । यद्यपि शारीरिक स्वास्थ्य भी कम मूल्यवान् नहीं है और ध्यान का एक उद्देश्य शारीरिक स्वास्थ्य भी है, पर सबसे मूल्यवान उद्देश्य है - अपने अस्तित्व का बोध । जब तक व्यक्ति अपने अस्तित्व का बोध नहीं कर लेता, तब तक दुःख को समाप्त नहीं कर सकता । दुःखों को समाप्त करने का एकमात्र साधन है - सत्य की उपलब्धि अस्तित्व की उपलब्धि । Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy