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________________ लेश्या-ध्यान १२७ जान-तंत्र लेश्या-तंत्र तक समाप्त हो जाता है। इन दोनों के निर्देशों और शित करने के लिए क्रिया-तंत्र सक्रिय होता है, जिनके तीन कर्मचारी हैं-मन, वाणी और शरीर | मन का काम है-स्मृति, कल्पना और चिन्तन करना। उसका काम ज्ञान करना नहीं है। वह चित्त-तंत्र और देण्या-तंत्र से मिलने वाले निर्देशों का पालन करता है। निष्कर्ष की भाषा में-मूल है चैतन्य या आत्मा । उस पर पहला वलय है कषाय-तंत्र का। चैतन्य के स्पन्दन कषाय के वलय को पार कर अध्यवसाय के रूप में बाहर आते हैं और वह लेश्या-तंत्र के साथ मिलकर भावधारा बन जाते हैं। दूसरा वलय है-योग-तंत्र का। योग का अर्थ है-प्रवृत्ति। मन, वचन और काया योग-तंत्र के विभाग हैं। उनका काम है-प्रवृत्ति करना। कषाय-तंत्र और योग-तंत्र के बीच की कड़ी है-ग्रन्थि-तंत्र और नाड़ी-तंत्र। इस प्रकार ___ प्राणी मूल आत्मा कर्म शरीर, तैजस शरीर चैतन्य के स्पन्दन कषाय अध्यवसाय चित्त लेश्या ज्ञान भावधारा ग्रन्थि-तंत्र नाड़ी-तंत्र क्रिया-तंत्र (योग-तंत्र) (चिन्तन, वाणी, व्यवहार) Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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