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________________ १०७ चैतन्य-केन्द्र प्रेक्षा वृत्ति, प्रवृत्ति: पुनरावृत्ति कर्म की प्रेरणा स्रोत है-वृत्ति । वृत्ति से प्रेरित होकर ही मनुष्य और पशु कर्म करते हैं। वृत्तियां अनेक हैं आहार की वृत्ति, भय की वृत्ति, काम और परिग्रह की वृत्ति, क्रोध और मान की वृत्ति, माया और लोभ की वृत्ति । इन वृत्तियों से प्रेरित होकर ही प्राणी कर्म करता है। प्रत्येक कर्म के पीछे इनमें से किसी एक या अधिक वृत्तियों की प्रेरणा मिलेगी । वृत्ति से प्रवृत्ति और प्रवृत्ति से पुनरावृत्ति - य 1- यह चक्र निरन्तर चलता रहता है। वृत्ति जागी, प्रवृत्ति हुई । हाथ से चांटा मारने के पीछे जो हमारी क्रोध की वृत्ति है, उसका शोधन करना है। हाथ का क्या शोधन होगा ? हाथ चलता ही रहेगा। चांटे मारने में हाथ नहीं चलेगा तो वह प्रणाम करने में चलेगा, भोजन करने में चलेगा। हाथ का शोधन नहीं करना है। कर्म, अकर्म तब बनता है जब वृत्ति का शोधन होता है। कर्म के साधनों का शोधन नहीं होता, कर्म की प्रेरणा का शोधन हो सकता है। पर कर्म की प्रेरणा का शोधन केवल मनुष्य ही कर सकता है, पशु नहीं कर सकता। यही मनुष्य और पशु के बीच की भेद-रेखा है। आदमी और पशु की परिभाषा हम इन शब्दों में कर सकते हैं- जो वृत्ति का शोधन नहीं कर सकता है, वह होता है पशु । पशु की पशुता चलती रहेगी; इसलिए कि उसमें वृत्ति - परिष्कार की कोई सम्भावना नहीं है। मनुष्य पशुता से ऊपर उठ सकता है क्योंकि उसमें वृत्ति- परिष्कार की क्षमता है। मनुष्य की विलक्षण क्षमता अनेक अर्थों में मनुष्य भी निःसन्देह एक 'प्राणी' है। वह अन्य सभी प्राणियों की तरह ही आहार-संज्ञा, भय-संज्ञा, मैथुन - संज्ञा और परिग्रह- संज्ञा वाला है, इसीलिए उसे भूख लगती है, वह भयभीत होता है, वह कामासक्त होता है और आक्रमण करता है। इस प्रकार भोजन करना, भोजन की सामग्री जुटाने के लिए प्रयत्न करना, स्व-संरक्षण के लिए लड़ाई करना तथा प्रजनन करना-इन सभी प्रवृत्तियों को मनुष्य भी अन्य सभी प्राणियों की तरह ही करता है, क्योंकि मनुष्य भी अन्य प्राणियों की तरह ही अपनी दैहिक आवश्यकताओं की अन्तःप्रेरणा से बाधित है । द्वेष, अनुराग, इच्छाओं, वासनाओं जैसी वृत्तियां उसकी प्रवृत्तियों पर उसी तरह हावी होता हैं, जिस प्रकार अन्य प्राणियों पर होती हैं। इन सब दृष्टियों से तो मनुष्य भी केवल एक 'प्राणी' ही है । पर इन सबके बावजूद मनुष्य में कुछ ऐसी Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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