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________________ चैतन्य केन्द-प्रेक्षा मस्तिष्क में है, वे हमारे अंग इस प्रकार मर्मस्थान एक १०५ है वे हमारे अंगूठे में भी हैं। ये केन्द्र एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं। मर्मस्थान, एक्यूपंक्चर के पोइंट्स, अन्तःस्रावी ग्रन्थियां ये सब वेतन्य-केन्द्र से सम्बद्ध और प्रभावित हैं। चैतन्य-केन्द्र सब अवयवों में सक्रियता पैदा करने वाले हैं। ये नों को भी संचालित करते हैं और मन को भी संचालित करते हैं। की क्रियाओं को संतुलित करना साधना का मुख्य अंग है। यह कार्य चैतन्य-केन्द्र की प्रेक्षा द्वारा किया जा सकता है। ज्ञानकेन्द्र और कामकेन्द्र हम इस दृश्य शरीर को दो मुख्य केन्द्रों में विभाजित कर सकते हैं-ज्ञानकेन्द्र और कामकेन्द्र । नाभि से ऊपर मस्तिष्क तक का स्थान ज्ञानकेन्द्र है-चेतना-केन्द्र है और नाभि से नीचे का स्थान कामकेन्द्र है। हमारी चेतना इन दो वृत्तियों के आसपास उलझी रहती है। जहां चेतना ज्यादा उलझी रहती है, वहां चेतना का प्रवाह भी अधिक हो जाता है। ऊर्जा का मुख्य केन्द्र कामकेन्द्र है। सारी चेतना इसी के आसपास बिखरी पड़ी है। ज्ञानकेन्द्र में ऊर्जा बहुत कम है, क्योंकि आज के मनुष्य की मौलिक वृत्ति है 'काम' और इसलिए उसकी सारी चेतना, सारी ऊर्जा वहीं सिमटी पड़ी है। उसका ध्यान उधर ही ज्यादा जाता है। मानसशास्त्री कहते हैं-"मनुष्य में काम का जितना तनाव होता है, उतना और किसी वृत्ति का नहीं होता। भय का तनाव कभी-कभी होता है। क्रोध का तनाव कभी-कभी होता है। ईर्ष्या और मान का तनाव कभी-कभी होता है। इसी प्रकार अन्य आवेगों का तनाव भी कभी-कभी होता है। किन्तु काम का तनाव सबसे ज्यादा होता है, सघन होता है। उसकी जड़ें बहुत गहरे में हैं।" इसी आधार पर यह कहा जा सकता है कि कृष्ण-लेश्या', नील लेश्या और कापोतलेश्या-इन तीनों अप्रशस्त या अधर्म लेश्याओं का केन्द्र भी यहीं होना चाहिए और यथार्थ में यही है। हमारी प्रत्येक वृत्ति और उसकी अभिव्यक्ति का केन्द्र इसी स्थूल शरीर में होगा। इन तीन अधर्म लेश्याओं की अभिव्यक्ति का केन्द्र कामकेन्द्र है। आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान के केन्द्र भी ये ही हैं। जब चेतना यहां रहती है, तब इष्ट का वियोग होने पर व्याकलता उत्पन्न होती है, अनिष्ट का संयोग होने पर क्षोभ पैदा होता है, प्रियता, अप्रियता की अनुभूतियां उत्पन्न होती हैं। वेदना के आने पर १. लेश्या के विषय में अगले प्रकरण में विस्तार से चर्चा की जाएगी। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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