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________________ प्रेक्षाध्यान: सिद्धान्त और प्रयोग अन्तःस्रावी हार्मोनों के द्वारा पुरुषत्व जागृत होता है, जिससे उनका पुरुष-रूप व्यक्तित्व बना रहता है। इन ग्रन्थियों के हार्मोन न केवल काम-वृत्ति पर अपितु शरीर के अन्यान्य अवयवों तथा उनके क्रिया-कलापों पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं। 'एस्ट्रोजन' और 'प्रोजेस्टेरोन' नामक दो हार्मोन स्त्रियों में ही होते हैं, जो स्त्री को पुरुष से भिन्न दिखाने वाले लक्षणों को पैदा करते हैं। पुरुष के लैंगिक हार्मोनों को एन्ड्रोजन' कहते हैं। 'टेस्ट्रोस्टेरोन', वृषणों द्वारा उत्पादित एन्ड्रोजनों में एक मुख्य हार्मोन है। स्त्रियों और पुरुषों- दोनों जातियों में पिच्यूटरी के हार्मोन गोनाड्स की क्रियाओं को नियन्त्रित करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आध्यात्मिक स्वरूप १०२ हमारा द्वैतात्मक अस्तित्व आत्मवादी दर्शन हमें इस सत्य की अनुभूति कराता है कि हमारा अस्तित्व द्वैतात्मक है- दो तत्वों का संयोग है। एक है चेतन तत्व, जीव, दूसरा है- अचेतन तत्व, शरीर । यह द्वैत तब तक बना रहता है जब तक चेतना का विशुद्धतम स्वरूप उपलब्ध नहीं हो जाता । द्वैतात्मक स्थिति में हमारे अभौतिक चैतन्यमय तत्त्व (आत्मा) को अपने सुख-दुःख के संवेदन के लिए तथा क्रियात्मक प्रवृत्ति के लिए एक स्थूल शरीर से ही काम नहीं चलता, अपितु सूक्ष्म शरीरों की अपेक्षा भी बनी रहती है। हमारे व्यक्तित्व की व्यूह रचना बहुत जटिल है। रचनाक्रम इस प्रकार बनता है - सम्पूर्ण व्यक्तित्व के केन्द्र में है - चैतन्य तत्त्व - द्रव्य आत्मा या मूल आत्मा । उस केन्द्र से बाहर परिधि में अतिसूक्ष्म शरीर यानी कार्मण शरीर है, जो कषाय के वलय को पैदा करता है। केन्द्र से चैतन्य तत्त्व के जो स्पन्दन निकलते हैं, वे कषायतन्त्र को पार कर बाहर आते हैं। वह है-अध्यवसाय का तन्त्र । यह स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर - तैजस शरीर के साथ सक्रिय होकर काम करता है। इस प्रकार हमारे मौलिक मनोवेगों, पाशवी आवेगों एवं कामुकता पर नियन्त्रण प्राप्त करने के लिए जो हमारे विवेक और प्रज्ञा को जगाता है. और हमें उन पर प्रभुत्व प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करता है, वह हमारी सूक्ष्म चैतन्यशील आत्मा ही है। 1 Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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