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________________ चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा ३. थाइरॉइड ग्रंथि थाइराइड ग्रन्थि दो पिण्डों से बनी हुई है। स्वर-यंत्र के समीप श्वासनली के ऊपर के छोर पर यह ग्रन्थि आसीन है। इन दो पिण्डों को जोड़ने वाली एक संकड़ी पट्टी होती है, जो टेंटुआ (कण्ठमणि) के ठीक नीचे होती है। इस ग्रन्थि को अत्यधिक विपुल मात्रा में रक्त की आपूर्ति की जाती है। उदाहरणार्थ-गुर्दे की अपेक्षा इसे चार गुना अधिक रक्त मिलता है। इस ग्रन्थि के मुख्य हार्मोन का नाम "थाइरोक्साइन" है। विपुल मात्रा में आयोडीन के अतिरिक्त लोहा, आर्सेनिक व फासफोरस की कुछ मात्रा इसमें होती है। यह नाड़ियों तथा मस्तिष्कीय ऊतकों के निर्माण में काम आता है। थाइराइड ग्रन्थि मूलतः शरीर में ऊर्जा उत्पादन का अवयव है। चयापचय की मात्रा तथा व्यक्ति में सक्रियता की तीव्रता को निर्धारित पेराथाइरॉइड, थाइरॉइड और थाइमस ग्रन्थियां एवं स्थान .. पेराथाइराइड थाइरॉइड थाइमस करने का मुख्य दायित्व इस ग्रन्थि पर है। पाचन क्रिया में भी यह ग्रन्थि सहायक होती है। इसके स्राव शरीर में जमा होने वाले विषों का प्रतिकार करते हैं। मस्तिष्कीय संतुलन को बनाए रखने का दायित्व भी इस पर है। शरीर में होने वाली वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की चयापचय-क्रिया को नियंत्रित करने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। गलगण्ड की बीमारी की रोकथाम या निवारण करने के लिए यह ग्रन्थि उत्तरदायी है। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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