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________________ : ५ : चैतन्य - केन्द्र- प्रेक्षा वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रत्येक प्राणी के जीवन के अस्तित्व तथा शारीरिक क्रियाओं का संचालन इस बात पर आधारित है कि उसके शरीर में अनेक तन्त्र एक "टीम" (मिलजुल कर काम करने वाले दल) के रूप में विविध क्रिया-कलापों को निष्पादित करे। एक ही प्रकार के कार्यों की श्रृंखला को निष्पादित करने वाले अनेक अवयवों के समूह को "तन्त्र" कहा जाता है। नाड़ी-ग्रंथि-तंत्र (Neuro endocrine System) नाड़ी - तन्त्र और अन्तःस्रावी ग्रन्थि - तन्त्र- ये दो शरीर के प्रमुख नियंत्रक एवं संयोजक हैं। वे शरीर के अन्य सभी तन्त्रों का नियोजन एवं संयोजन करते हैं तथा उनके माध्यम से समग्र शरीर के क्रिया-कलापों का विलक्षण पारस्परिक अनुबन्ध है और दोनों मिलकर सर्वांगीण रूप से शरीर - तन्त्र को संचालित करते रहते हैं। इन दोनों का पारस्परिक अनुबन्ध इतना विलक्षण है कि नाड़ी- तन्त्र और ग्रन्थि तंत्रों के अवयवों को एक अखण्ड तन्त्र के ही अंगरूप माना जाने लगा है, जिसे नाड़ी - ग्रन्थि तन्त्र ( Neuroendocrine System) की संज्ञा दी गई है । अन्तःस्रावी ग्रन्थि - तन्त्र अपने प्रभावों का निष्पादन रासायनिक नियंत्रकों के स्रावों (हार्मोन) के माध्यम से करता है । प्राणी की वृद्धि और विकास, काम-प्रवृत्तियां, गर्भाधान और जनन, चयापचय आदि महत्वपूर्ण कार्यों का नियमन करने का दायित्व इन स्रावों पर होता है। ये हार्मोन न केवल प्रत्येक शारीरिक क्रिया में भाग लेते हैं, अपितु व्यक्ति की मानसिक दशाओं, स्वभाव और व्यवहार पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं। ये हार्मोन मनुष्य के भीतरी आवेशों और आवेगों तथा वृत्तियों और वासनाओं के अत्यन्त शक्तिशाली व प्रेरक बलों को उत्पन्न करने वाले प्रमुख स्रोत हैं । वृत्तियां आदि न केवल कामनाओं को उत्पन्न करती हैं अपितु उनकी पूर्ति के अनुरूप प्रवृत्ति के लिए व्यक्ति को बाध्य करती हैं । प्रेम, घृणा, भय आदि भाव अन्तःस्रावी स्रोतों द्वारा जनित आवेग हैं। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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