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________________ सप्तम अध्याय 93 अहिंसा का उद्देश्य क्या है - आत्मशुद्धि या जीवरक्षा? कई विचारक अहिंसा के आचरण का उद्देश्य जीवरक्षा बतलाते हैं और कई आत्मशुद्धि। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जीवरक्षा तो होती है, पर आत्मशुद्धि नहीं। अहिंसा, जीवरक्षा के लिए हो तो आत्मशुद्धि या संयम की बात गौण हो जाती है और यदि वह आत्मशुद्धि के लिए हो तो जीवरक्षा की बात गौण हो जाती है। आचार्य भिक्षु मानते हैं कि 'अहिंसा में जीवरक्षा की बात गौण है; मुख्य बात है आत्मशुद्धि की।' एक संयमी सावधानीपूर्वक चल रहा है। उसके पैर से कोई जीव मर गया तो भी वह हिंसा का भागी नहीं होता, उसको पापकर्म का बन्ध नहीं होता। कहा है - इरजा सुमत चालंतां साध ने, कदा जीवतणी हुवे घात। ते जीव मुंआ रो पाप साधने, लागे नहीं असंमात रे॥ एक संयमी असावधानीपूर्वक चल रहा है, उसके द्वारा किसी भी जीव का घात नहीं हुआ फिर भी वह हिंसक है; उसके पाप-कर्म का बन्धन होता है। कहा है - जो ईर्या सुमत विण साधु चाले, कदा जीव मरे नहीं कोय। तो पिण साध ने हिंसा छकाय री लागी, पाप तणो बन्ध होय रे।। आचार्य भिक्षु के अहिंसा सम्बन्धी सूत्र - (1) देह के रहते हुए पूर्णतः जीवघात से नहीं बचा जा सकता किन्तु अहिंसा की पूर्णता आ सकती है। 1. 2. जिनआज्ञा चौपाई 3/30 वही, 3/31 सभी अंश भिक्षु विचारदर्शन से संगृहीत
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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