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________________ पंचम अध्याय अहिंसा की आध्यात्मिक सूक्ष्म व्याख्या अहिंसा की व्यावहारिक उपयोगिता के बारे में जितना कहा जाए, उतना कम है। जीव-व्यवहार में अहिंसा आ जाए तो जीवन 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' के आदर्श को प्राप्त कर सकता है। अहिंसा के व्यावहारिकपक्ष की अनिवार्य उपस्थिति के साथ-साथ उसके आध्यात्मिकपक्ष पर विचार करना भी आवश्यक है। अहिंसा का आध्यात्मिक सूक्ष्म दृष्टिकोण यदि साथ में रहेगा तो मार्ग में कहीं रुकावट नहीं आयेगी। अहिंसा की आध्यात्मिक व्याख्या समझने के लिए मनुष्य की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पहले से ही होनी चाहिए। अपात्र व्यक्ति को यह व्याख्या समझ में आना असम्भव भले ही न हो किन्तु कठिन अवश्य है। इस व्याख्या को आत्मसात् करके ज्ञानी सम्यग्दृष्टि मनुष्य, अहिंसाधर्म की अवश्य श्रीवृद्धि करेगा किन्तु ज्ञान न होने पर भी स्वयं को ज्ञानी मानकर, अज्ञानी मिथ्यादृष्टि मनुष्य इस सूक्ष्म व्याख्या को गलत तरह से समझकर स्वच्छन्द प्रवृत्ति भी कर सकता है, अत: इसे समझने के लिए अत्यन्त धैर्य तथा विवेक की आवश्यकता है। आत्मा की अमरता का सिद्धान्त आत्मा उस शुद्ध चैतन्यतत्त्व का नाम है, जो मूलतः अविनाशी है अर्थात् आत्मा का कभी नाश नहीं होता। आत्मा, शरीर में व्याप्त होकर रहता है। शरीर अस्थायी व अनित्य है क्योंकि उसका नवीन संयोग होता है।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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