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________________ अहिंसा दर्शन अर्थात् सावधानी पूर्वक धीरे-धीरे चल, बल्कि न चल तो और भी अच्छा, क्यों कि तेरे पैर के नीचे हजारों जीवित प्राणी हैं, तू उनकी रक्षा कर। ऐसा लगता है मानो यह पद्य जैन परम्परा की इस गाथा का फारसी रूपान्तरण हो तहेवुच्चावया पारणा भत्तठाए समागया। तं उज्जुअंन गच्छेज्जा जयमेव परक्कमे।। अर्थात् हे भव्य ! चलते समय कोई प्राणी मर न जाये, तू ऐसे चल कि अपना अपना पेट पालने के लिए मार्ग में चलने वाले अन्य जीव भयभीत न हों। सब जीना चाहते हैं सव्वे जीवा वि इच्छंति, जीविउं न मरिजिउं। तम्हा पाणवहं घोरं, निग्गंथा वज्जयंति णं।। सभी जीवन जीना चाहते हैं, मरना नहीं। इसलिए प्राणवध को भयानक जानकर निर्ग्रन्थ उसका वर्जन करते हैं। (समण सुत्तं, अहिंसा सूत्र)
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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