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________________ अहिंसा दर्शन 2. वचनगुप्ति वचन के द्वारा अनर्गल या निरर्थक प्रलाप नहीं करना, विसंवाद, गाली-गलौच, अपशब्द आदि से स्वयं को बचाकर रखना, वचनगुप्ति कहलाती है। 3. ईर्यासमिति - उठने-बैठने, चलने-फिरने तथा और भी अनेक प्रकार की क्रियाएँ करते समय इस बात का ध्यान रखना कि हमारी इन क्रियाओं से किन्हीं छोटे-बड़े जीवों को कष्ट न पहुँचे या उनका जीवन न चला जाए, इसका पालन करना, ईर्यासमिति कहलाती 4. आदाननिक्षेपण समिति- सावधानीपूर्वक वस्तुओं को उठाना और रखना, ताकि छोटे-छोटे जीवों की हिंसा न हो, इसका पालन करना, आदाननिक्षेपण समिति कहलाती 5. आलोकित-पानभोजन समिति - इसका अर्थ है कि दिन के प्रकाश में ही निर्दोष भोजन ग्रहण करना। भोजन करने में साफ-सफाई का ध्यान रखना, सात्त्विक-शाकाहार ही ग्रहण करना और सूर्यास्त के पहले भोजन करना, आलोकितपानभोजन समिति कहलाती है। इस प्रकार इन भावनाओं से अहिंसाव्रत समृद्ध और वृद्धिंगत होता है। सत्यव्रत सत्य और अहिंसा का परस्पर बहुत गहरा सम्बन्ध है। एक के अभाव में दूसरे का पालन सम्भव नहीं है। ये दोनों परस्पर एक-दूसरे के अन्तर्गत लिया गया है, इसी प्रकार यद्यपि समितियाँ पाँच हैं, पर जिन समितियों का सीधा सम्बन्ध अहिंसा से है, उन्हें अहिंसाव्रत में और जिन समितियों का सम्बन्ध अन्य सत्यव्रत, अचौर्यव्रत आदि से है, उन्हें उन-उन व्रतों की भावनाओं के अन्तर्गर्भित किया गया है।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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