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________________ प्रथम अध्याय उभार देना, उनके विकास के मार्ग में बाधा पहुँचाना आदि प्रवृत्तियाँ भी हिंसा की परिधि में समाविष्ट हैं। इन प्रवृत्तियों का सर्वथा निरोध अहिंसा का आदर्श है। यह अहिंसा का नकारात्मक (Negative) पक्ष है। अपने सकारात्मक (Positive) पक्ष में 'अहिंसा' समता, करुणा, मैत्री, संयम, शान्ति आदि उदात्तवृत्तियों से अनुबन्धित है। यहाँ अहिंसा का वाच्यार्थ 'न मारने' तक की सीमा में आबद्ध नहीं है लेकिन जहाँ यह प्रतिबद्धता जुड़ जाती है, वहाँ अहिंसा का व्यापक अर्थ एक छोटे से दायरे में समा जाता है। समता का धरातल असीम है। मैत्री की पौध इसी धरातल पर फली-फूली रह सकती है, इससे अपनी ही तरह दूसरों को भी समझने की भावना विकसित होती है। इससे प्रेरित व्यक्ति ही अहिंसा को समझ सकता है और उसका पालन कर सकता है। शास्त्रों में अहिंसा के अनेक नाम गिनाये गये हैं। मैत्री, समता, शान्ति, बन्धुत्व, अभय, अप्रमाद, विशुद्ध प्रेम या करुणा - ये सब अहिंसा के ही पर्यायवाची हैं। इससे स्पष्ट होता है कि अहिंसा केवल नकारात्मक नहीं है, उसका सकारात्मक स्वरूप भी बहुत व्यापक है। यद्यपि शाब्दिक व्युत्पत्ति के आधार पर उसका अर्थ नकारात्मक है किन्तु उसकी परिभाषा में जितना व्यापक नकारात्मक अर्थ गर्भित है, उतना ही व्यापक सकारात्मक अर्थ भी प्रतिष्ठित है। जिस प्रकार किसी को न मारना, न सताना, अहिंसा की परिभाषा में अभिधेय है; उसी प्रकार मैत्री और बन्धुत्व का बर्ताव रखना भी उसकी परिभाषा में समाविष्ट है। अहिंसा, विधेयात्मक और निषेधात्मक, दोनों पहलुओं का एक समान दृष्टि से अवलोकन करती है। अहिंसा के केवल निषेधात्मक रूप को लेना, वास्तव में उसकी एकाङ्गी व्याख्या है। अहिंसा केवल निवृत्तिमूलक नहीं है प्रवृत्ति मूलक भी है। वह केवल सिद्धान्त नहीं - जीवन प्रयोग भी है। वह बुद्धि विलास का साधन नहीं बल्कि भावनात्मक विकास का सात्विक साधन है जिसका सम्बन्ध सहअस्तित्त्व से जुड़ा हुआ है।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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