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________________ प्रथम अध्याय अहिंसा की पृष्ठभूमि विश्व का प्रत्येक प्राणी जीवन जीना चाहता है, सिर्फ जीना ही नहीं चाहता बल्कि सुखपूर्वक जीना चाहता है। मृत्यु और दुःख किसी भी प्राणी को पसन्द नहीं हैं। प्राकृतिक मृत्यु, आपदाओं और दु:खों पर तो प्राणी का वश नहीं चलता अत: उन्हें तो भोगना ही पड़ता है किन्तु किसी दूसरे प्राणी के द्वारा दिये गये दुःख और मृत्यु तो उसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं हैं। यह तथ्य किसी धर्म, मजहब या राष्ट्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सच्चाई सार्वभौमिक, सार्वकालिक और सार्वदेशिक है। दुनिया या ब्रह्माण्ड का चाहे कोई भी स्थान हो, जहाँ-जहाँ जीव, चेतना, रूह, प्राणी या फिर आत्मा वास करती है, वहाँ-वहाँ इस तथ्य या सच्चाई को कोई नकार नहीं सकता। हम चाहे किसी भी राष्ट्र या मजहब के हों अथवा मनुष्य के अलावा किसी भी जाति के प्राणी हों, हमें दुःख और मृत्यु किसी भी तर्क से स्वीकृत नहीं है। बस, यही एक आधार है, जिस पर आधारित है सम्पूर्ण मानवधर्म । सम्पूर्ण विश्व में मनुष्य हैं और वे भी सभी अलग-अलग धर्मों को मानने वाले हैं। छोटे-बड़े अनेकानेक सम्प्रदाय सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित हैं। हम यदि गहराई से विचार करें कि उन सभी धर्मों में कौन सी ऐसी बात है, जो एक जैसी है? कौन सा ऐसा सिद्धान्त है, जिसका पालन करने के लिए सभी धर्मगुरु प्रेरित करते हैं? तो हम पायेंगे कि प्रेम, करुणा, इंसानियत, मानवता,
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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