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________________ रूप से मन, वचन, काय से आचरण में उतारने पर बल दिया है। अहिंसा का यह उदात्त - सिद्धान्त जब भी संसार में व्यवहार में आयेगा, तो निश्चय ही जैनधर्म का विशेष योगदान रहेगा और भगवान् महावीर का नाम 'अहिंसा के अग्रदूत' के रूप में लिया जायेगा। यदि किसी ने अहिंसा के सिद्धान्त को विकसित किया है, तो वे महावीर हैं। इस पर विचार करें और अपने जीवन में उतारें । ' अतः निःसंदेह जैनधर्म दर्शन के अहिंसा विषयक योगदान को नकारा नहीं जा सकता। अहिंसा के प्रति जैन धर्म की अत्यधिक दृढ़ता का ही यह परिणाम है कि आज भी अधिकांश अनुयायी मांसाहार इत्यादि हिंसक कुरूतियों से बचे हुये हैं। आज भी दिगम्बर - श्वेताम्बर जैन मुनि पूरे देश में नंगे पैर पैदल भ्रमण करते हैं। गाँव-गाँव, शहर-शहर देश के सभी वासियों को अहिंसा - शाकाहार, त्याग, तपस्या और संयम का उपदेश देकर आज भी मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा में समर्पित हैं। अनेक हिन्दू साधु सन्त गोबध आदि के विरोध में आन्दोलन करते रहते हैं। शाकाहार के प्रचार-प्रसार में संलग्न रहते हैं। कई अनेक महापुरुष आज भी हैं जो हिंसा के घोर अन्धकार में भी अहिंसा की रोशनी करने का प्रयास लगातार कर रहे हैं। हम सभी को मिलकर अहिंसा का रथ आगे की तरफ ले जाना है। यह किसी एक धर्म, सन्त या व्यक्ति का कार्य नहीं है। इन शाश्वत मूल्यों के संरक्षण और संवर्धन के लिए सभी अहिंसा प्रेमियों को अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने होंगे तभी हम मानवता की रक्षा सही अर्थों में कर सकेंगे। 1. वर्धमान महावीर स्मृति ग्रन्थ, पृ. 57 पर उद्धृत । ( xxi )
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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