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________________ अहिंसा दर्शन वास्तविकताओं से पूरी तरह विच्छिन्न है, कटा हुआ है। अपने इस सामाजिक अलगाव और निर्वासन को भरने के लिए वो ऐसी नाइटपार्टियों में जाते हैं जैसे बीना रमानी के कुतुब कोलोनेट की पार्टी थी। हमारा दिन व्यापार या राजनीति में गुजरता है और उसकी संस्कृति रात में शुरू होती है। 162 हमारी ‘नाक्टरनल कल्चर' या 'निशाचर' संस्कृति उस काली दौलत से पैदा हुई है जिसे अधिक परिष्कृत अंग्रेजी लहजे में 'सॉफ्टमनी' या 'पतली कमायी' कहते हैं। यह गाढ़ी कमाई की विलोम होती है। अपराध और हिंसा उसका सहज 'बाइप्रोडक्ट' है। यही वह हिस्सा है जिसने हमारे देश और समाज के सामने 'नैतिक महाशून्यता' का यह विराट परिदृश्य निर्मित किया है। अब निश्चित ही इस निशाचर संस्कृति की रात के अंधेरे में डोलती परछाइयों और उसके आतंक के पहचान के लिए ज्यादा आधुनिक नहीं, ज्यादा उपभोक्तावादी नहीं बल्कि प्राचीन परिभाषाओं में जाना ही पड़ेगा, लेकिन ऐसा करते हुए हमें शर्म आ सकती है क्योंकि हमने अब परमाणु बम बना डाले हैं और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर न्यूक्लियर क्लब के सदस्य बन चुके हैं। कैसे पायें निजात ? आज ऐसे वक्त में इस विकराल समस्या को जो कि हमारे जीवन के प्रत्येक घटक को प्रभावित करती है का समाधान किसी एक दृष्टिकोण से नहीं सोचा जा सकता। ऐसे वक्त में जब देश में न तो वे शक्तियाँ सक्रिय हैं जो मनुष्य के मन में अहिंसा का संस्कार देती हैं और न वे शक्तियाँ ताकतवर हैं जो हिंसक मन वाले मनुष्य की गतिविधि पर रोक लगाती हैं तब इस समस्या का समाधान क्या होगा? इसको समझने के लिए वास्तव में अतिरिक्त कुछ करने की आवश्यकता नहीं है ? अब हमारी चिंता का केन्द्र बिन्दु यह होना चाहिए कि मानव का मन अहिंसक संवेदनशील और सामाजिक न्यायपूर्ण संस्कार में किस तरह दीक्षित हो और उसकी चिंता यह होनी चाहिए कि हिंसक मनुष्य के असामाजिक
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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