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________________ 152 अहिंसा दर्शन नहीं खाते थे। पगरखी लकड़ी की पहनते थे। चमड़े का प्रयोग नहीं करते थे। नंगे रहने की सराहना करते थे, सचमुच वे दया की मूर्ति थे। डॉ. विशम्भर नाथ पाण्डेय ने उनके एक भजन का अर्थ लिखा है, जिससे ज्ञात होता है कि सभी जीव जन्तुओं यहाँ तक कि कीड़े-मकोड़ों के प्रति भी वे अपरिसीम करुणापरायण थे। उनके भजन का भावार्थ है- 'वृथा पशुहिंसा में क्यों जीवन कलंकित करते हो। बेचारे वनवासी पशुओं का क्यों निष्ठुर भाव से संहार करते हो। हिंसा सबसे बड़ा कुकर्म है। बलि के पशुओं का आहार मत बनाओ अण्डे और मछलियाँ भी मत खाओ। इन सब कुकर्मों से हमने अपने हाथ धो डाले हैं। वास्तव में आगे जाकर न बधि रहेगा और न बध्य। काश कि बलि पकने से पहले मैंने इन बातों को समझ लिया होता।' जीव दया का यह चिन्तन कुरआन मजीद में भी प्रकट हुआ है। 'अन-नस्ल' में 23 आयतें हैं जो मक्का में उतरीं थीं। उनमें एक प्रसङ्ग बड़ा महत्त्वपूर्ण है "सुलैमान के लिए उसकी सेनायें एकत्र की गयीं जिनमें जिन्न भी थे और मानव भी, और पक्षी भी, और उन्हें नियंत्रित रखा जाता था; यहाँ तक कि जब ये सब च्यूँटियों की घाटी में पहुँचे, तो एक च्यूँटी ने कहा : हे च्यूँटियों! अपने घरों में घुस जाओ ऐसा न हो कि सुलैमान और उनकी सेनायें तुम्हें कुचल डालें और उन्हें खबर भी न हो।" इसी पृष्ठ पर नीचे सन्दर्भ में लिखा है कि च्यूँटियों की बात कोई सुन नहीं पाता; परन्तु अल्लाह ने हसरत सुलैमान अ. को च्यूँटियों की आवाज़ सुनने की शक्ति प्रदान की थी।" कुरआन मजीद का यह प्रसङ्ग इसलिए संवेदनशील है कि संसार के छोटे से प्राणी चींटी की भी हृदय वेदना की आवाज को सशक्त अभिव्यक्ति देकर इस ग्रन्थ में उकेरा गया है। यह अहिंसक भावना की सशक्त अभिव्यक्ति है। हमें ऐसे प्रसङ्गों को उजागर करके सामने लाना चाहिए ताकि अहिंसा के प्रति मुसलमानों का विश्वास और बढ़े। 1. कुरआन मजीद, पार-12, सूर-27 'अन-नस्ल' पृ. 424
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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