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________________ 150 अहिंसा दर्शन परिव्राजकों की जमात थी। कोई कलन्दर दो रात से अधिक एक घर में न रहता था। कलन्दर चार नियमों का पालन करते थे-साधुता, शुद्धता, सत्यता और दरिद्रता। वे अहिंसा पर अखण्ड विश्वास रखते थे। डॉ. कामता प्रसाद जैन अपने एक निबन्ध 'विदेशी संस्कृतियों में अहिंसा" मे लिखते हैं कि 'मध्यकाल में जैन दार्शनिकों का एक संघ बगदाद में जम गया था, जिसके सदस्यों ने वहाँ करुणा और दया, त्याग और वैराग्य की गंगा बहा दी थी। सियाहत नामए नासिर' के लेखक की मान्यता थी कि इस्लाम धर्म के कलन्दर तबके पर जैनधर्म का काफी प्रभाव पड़ा था। वे लोग अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी अहिंसा का पालन करते थे, ऐसे अनेक उदाहरण भी मिलते हैं। श्री विशम्भरनाथ पाण्डेय लिखते हैं कि एक बार दो कलन्दर मुनि बगदाद में आकर ठहरे। उनके सामने एक शुतर्मुर्ग किसी का हीरों का हार निगल गया। सिवाय कलन्दरों के किसी ने यह बात नहीं देखी। हार की खोज शुरू हुई। कोतवालों को कलन्दर मुनियों पर सन्देह हुआ। मुनियों ने मूक पक्षी के साथ विश्वासघात करना उचित नहीं समझा। उन्होंने स्वयं कोतवालों की प्रताड़ना सहन कर ली लेकिन शुतुरमुर्ग के प्राणों की रक्षा की। डा. कामता प्रसाद लिखते हैं कि 'अलविया फिर्के के लोग हज़रत अली की औलाद से थे-वे भी मांस नहीं खाते थे और जीव दया को पालते थे। ईसा की 9वीं-10वीं शती में अब्बासी खलीफाओं के दरबार में भारतीय पण्डितों और साधुओं को बड़े आदर से निमंत्रित किया जाता था। इनमें जैन और बौद्ध साधु भी होते थे। इस सांस्कृतिक संपर्क का सुफल यह हुआ कि ईरान में अध्यात्मवाद जगा और जीव दया की धारा बही।' वे लिखते हैं कि प्राचीनकाल में अफगानिस्तान तो भारत का ही एक अंग था और वहाँ जैन एवं बौद्ध धर्मों का प्रचार होने से अहिंसा का 1. परमपुरुषार्थ अहिंसा, पृ. 14-19
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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