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________________ परिशिष्ट 147 एक और दोहा देखिए दयाभाव हिरदै नहीं, भखहिं पराया मास। ते नर नरक मह जाइहिं, सत्त भाषै रविदास। कबीर दास जी कहते हैं मांस मांस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय। आँखि देखि नर खात हैं, ते नर नरकहिं जाय।।6 एक और दोहा देखिएकबीर पापी पूजा बैसि करि, भखै मांस मद दोइ। तिनकी देखी मुक्ति नहीं, कोटि नरक फल होइ।।” रविदास जी तो स्पष्ट कहते हैं कि जो अपने शरीर के पोषण के लिए गाय, बकरी आदि का मांस खाते हैं, वे कभी भी स्वर्ग की प्राप्ति नहीं कर सकते, चाहे वे कितनी ही बार नमाज़ क्यों न पढ़ते रहें 'रविदास' जउ पोषणह हेत, गउ बकरी नित खाय। पढईं नमाजै रात दिन, तबहुँ भिस्त न पाय।। उनके अन्य दोहे भी ऐसा ही कटाक्ष करते हैं 'रविदास' जिभ्या स्वाद बस, जउ मांस मछरिया खाय। नाहक जीव मारन बदल, आपन सीस कटाय।।" 15. 16. 17. 18. 19. 20. जीवत कू मूरदा करहिं, अक खाइहिं मुरदार। मुरदा सम सभ होइहिं, कहि रविदास' विचार। वही, साखी - 190 संत कबीर सखियाँ, पृ. 294 वही, पृ. 295 रविदासदर्शन, साखी-183 वही, साखी- 187 वही, साखी-191
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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