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________________ 128 अहिंसा दर्शन कानून में अहिंसा भारत का संविधान, अहिंसा की पृष्ठभूमि पर निर्मित है। इसकी चर्चा हम पहले भी कर चुके हैं। भारत में कानून व्यवस्था बनाये रखने और दोषी को समुचित दण्ड देने का कार्य पुलिस प्रशासन और अदालतें करती हैं। कानून का उद्देश्य है कि सामाजिक शान्ति बनी रहे, व्यवस्थाएँ नियम से सञ्चालित हों तथा भ्रष्टाचार दूर रहे। अशान्ति फैलाने तथा नियम व व्यवस्थाएँ भट्ट करने पर दोषी को दण्डित भी किया जाता है किन्तु दण्ड व्यवस्था में भी अहिंसा प्रयुक्त होती है प्रश्न हो सकता है कि दण्ड तो साक्षात् हिंसा है, उसमें अहिंसा का प्रयोग कैसे हो सकता है ? किन्तु यदि हम अध्ययन करें तो पायेंगे कि दण्ड के नियम अहिंसा की आधारशिला पर निर्मित हैं। उदाहरण के रूप में 1 (1) (2) (3) (4) (5) छोटे जुर्म के लिए बड़ी सजा का प्रावधान न होना अहिंसा है; उसकी सजा भी छोटी होती है। निरपराधी को सजा न हो। आरोप सिद्ध होने से पूर्व कोई सजा न हो। अपराधी को भी अपना बचाव पक्ष रखने का अधिकार है। आत्मरक्षा, मानसिक असन्तुलन आदि की स्थिति में हत्या जैसे जुर्म की सजाओं में भी अन्तर है इत्यादि । वर्तमान की विडम्बना वर्तमान समय में कानून के रखवालों और उनका पालन करने वालों के मध्य जो हिंसक सम्बन्ध देखने में आ रहे हैं, वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं। कानून के रक्षक, जनता की सुरक्षा के जिम्मेवार पुलिस इत्यादि प्रशासन भी कभी-कभी भक्षक की भूमिका में नजर आते हैं। इस क्षेत्र में निम्न हिंसाएँ सामने आती हैं, जो कानून की आड़ में की जाती हैं (1) पुलिस द्वारा जनता के साथ निर्ममतापूर्ण व्यवहार होना ।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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