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________________ नवम अध्याय 125 इसलिए आवश्यक है कि हम धन तो कमाएँ लेकिन अपने मानवधर्म की रक्षा के लिए ऐसा व्यापार करें, जिसमें कम से कम हिंसा हो। ऐसे व्यापार से एक सन्तुलन स्थापित होता है, जो राष्ट्र और समाज को शान्ति प्रदान करता है। हम पैसा कमाने के लिए, अपने स्वाद के लिए तथा शरीर के सौन्दर्य के लिए ऐसे कार्य क्यों करें जिसमें बेकसूर निरीह जानवरों, पशु-पक्षियों की जान ली जाती हो? उपर्युक्त हिंसा तो वह व्यवसायिक हिंसा है, जो हमें साक्षात् दिखलायी देती है किन्तु व्यवसाय में शोषण जैसी कई हिंसाएँ ऐसी भी होती हैं, जो बाहर से देखने पर प्रगट दिखायी नहीं देतीं। वे हिंसाएँ निम्न प्रकार से होती हैं - (1) मजदूरों या कर्मचारियों से अधिक कार्य करवाना और कम वेतन देना। (2) अपने अधीनस्थों को डराना, धमकाना और व्यक्तिगत द्वेषवश उन्हें नौकरी से निकाल देना। (3) मजबूरी का फायदा उठाते हुए मजदूरों को कम पैसा देकर, अधिक रकम के कागजों पर हस्ताक्षर करवाना। (4) महिला कर्मचारियों की मजबूरी का फायदा उठाकर, उनका यौन-शोषण करना। (5) अपने परिवार के सदस्यों को अयोग्य होने पर भी कम्पनी में ऊँचे पद पर, ऊँची तनख्वाह देकर रखना तथा वही काम एक योग्य कर्मचारी से कम वेतन पर करवाना। __(6) उचित इनकम टैक्स आदि नहीं देना तथा हिसाब-किताब में हेर-फेर करना इत्यादि। इस प्रकार की अनेक हिंसाएँ व्यवसाय में होती हैं। आरम्भ में तो लगता है कि ऐसा करने से अधिक पैसा कमाया जा रहा है किन्तु प्रकारान्तर से ऐसी स्थितियाँ विस्फोटक रूप भी धारण कर लेती हैं। अधीनस्थों के
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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