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________________ गाथा हमेशा खुला रहता है, कभी बंद नहीं किया जाता। उस पिंजरे में, जिसके नौ दरवाजे खुले हैं, एक श्वास का पक्षी बैठा है। वह चला जाए, उसमें कोई आश्चर्य नहीं है। किन्तु वह टिक रहा है, यह आश्चर्य की बात है। पिंजरे के नौ दरवाजे खोलकर पक्षी को बंद रखना क्या आश्चर्य नहीं है? इस दुःख बहुल स्थिति का अनुभव करना और यह सोचना कितना महत्त्वपूर्ण है-वह कौन सा कर्म है जिससे मेरी दुर्गति न हो! मुनि ने कहा-'जम्बूकुमार! तुमने मनुष्य के दोनों भवों में साधना की। एक बार स्खलित भी हुए किंतु पुनः अच्छी साधना कर ली। उस अच्छी साधना से तुम पुरुषोत्तम बन गए।' ___ रथनेमि और राजीमती का विश्रुत प्रसंग है। रथनेमि एक बार विचलित हुए, फिर संभले। संभलने के बाद ऐसी साधना की, सूत्रकार कहते हैं वे पुरुषोत्तम बन गये। जैन साहित्य में भगवान महावीर और सम्राट् श्रेणिक का एक संवाद उपलब्ध होता है। वह संवाद उस समय का है जिस समय जम्बूकुमार का जन्म नहीं हुआ था। भगवान महावीर राजगृह में समवसृत थे। सम्राट् श्रेणिक भगवान महावीर के दर्शनार्थ आए। भगवान का प्रवचन सुना, धर्म देशना सुनी। देशना के अंत में सम्राट श्रेणिक ने अंतिम केवली के संदर्भ में एक प्रश्न पूछा। ऐसा प्रतीत होता है-प्राचीनकाल में धर्म देशना के अंत में कुछ प्रश्न भी पूछे जाते थे, जिज्ञासाएं भी होती थीं। यह अच्छा क्रम है। कोरा प्रवचन सुना, चले गये। मन में कोई संशय हुआ, संदेह हुआ, जिज्ञासा हुई और उसका समाधान नहीं हुआ तो कुछ कमी रह जाती है। यह सुन्दर क्रम है-आधा घंटा प्रवचन हो और १०-२० मिनिट प्रश्नोत्तर के लिए रखा जाए। किंतु अनेक बार ऐसा होता है कि प्रश्न पूछने वाले भी नहीं मिलते। किसी के मन में प्रश्न जागता ही नहीं है तो जिज्ञासा-समाधान का क्रम कैसे चले? श्रेणिक ने देशना के बाद एक प्रश्न पूछा भगवान महावीर से—'भंते! आप केवली हैं। आपके बहुत सारे साधु भी केवली हैं। यह केवलज्ञान की परम्परा चल रही है। मैं जानना चाहता हूं कि यह केवलज्ञान की परम्परा कब तक चलेगी? अंतिम केवली कौन होगा?' श्रेणिक ने यह प्रश्न क्यों पूछा? इसका कोई कारण उपलब्ध नहीं है। प्रश्नकर्ता स्वतंत्र होता है। जो चाहे, पूछ सकता है। उत्तर देने वाला परतंत्र होता है, बंधा हुआ होता है। जो प्रश्न पूछा जा रहा है, उसी का उत्तर देना होता है पर पूछने वाले पर यह बंदिश नहीं होती, यह नियम नहीं होता। यह उसकी स्वतंत्रता है कि मन में आए, वह पूछ ले। इसलिए कभी-कभी ऊटपटांग और विचित्र प्रश्न भी प्रस्तुत हो जाते हैं। __एक बार पूज्य गुरुदेव का भरतपुर में प्रवास था। रात्रि में प्रवचन हुआ। प्रवचन के बाद गुरुदेव ने कहा-मुनि नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञ) संस्कृत में आश् कविता करेंगे। कोई समस्या देना चाहें तो दे सकते हैं। एक विद्वान् खड़ा हुआ, बोला-'मेरी एक समस्या है, उसे पूरा करें।' 'विद्वत्वर! समस्या क्या है?' विद्वान् बोला-'समस्या यह है-मच्छर के गले में हाथियों का यूथ घुस गया है।' मशकगलकरंधे हस्तियूथं प्रविष्टं। परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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