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________________ भूसी, चारा खेती के साथ होता है पर खेती का मुख्य फल क्या है? खेती का मुख्य फल है अनाज। उसके साथ पलाल, तूरी, चारा सब कुछ होता है। हम दोनों को एक न मानें। जम्बूकुमार का यह चिन्तन उपयुक्त था। उसने यह नहीं सोचा-मैं जो सफल हुआ हूं वह धर्म से हुआ हूं। उसने यह सोचा-मैंने जो कुछ पाया, कर्म के विपाक से पाया। मैंने कौनसा कर्म किया, जिसके विपाक से मैं सफल बना? मैं श्रेष्ठी के घर में आया, सर्वत्र विजय मिली। अपूर्व सम्मान मिला। प्रचुर यश मिला। चौथा प्रश्न यह किया जा सकता है मैं कहां हूं? क्या मैं लाडनूं में हूं, राजस्थान में हूं? हिन्दुस्तान में हूं? यह बाह्य दुनिया से जुड़ा प्रश्न है। भीतरी दुनिया से जुड़ा प्रश्न है क्या मैं शरीर में हूं? आत्मा में हूं? मैं शरीर में हूं तो मेरी चेतना कहां है? जो व्यक्ति यह प्रश्न पूछता है, उसे समाधान मिल जाता है। प्रेक्षाध्यान शिविर में साधक को यह प्रयोग कराया जाता है कि आप देखें, आपकी चेतना कहां है? क्या नाभि के आसपास केन्द्रित है या मस्तिष्क के आसपास केन्द्रित है? जर्मनी के एक प्रोफेसर का यही प्रश्न रहा–'आप जो प्रयोग करवाते हैं, यह मुझे बताइये कि मैं कहां हूं?' मैंने कहा-'आपकी सारी बातचीत से लगता है कि आपकी चेतना मस्तिष्क के परिपार्श्व में है।' चेतना नाभि के आस-पास होगी तो एक अलग प्रकार का व्यक्तित्व होगा। चेतना मस्तिष्क के परिपार्श्व में होगी तो एक अलग प्रकार का व्यक्तित्व होगा। नाभि पर केन्द्रित चेतना का ऊर्ध्वारोहण होता है तो सारा व्यक्तित्व बदल जाता है, आचरण, व्यवहार और चिंतन बदल जाता है। हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि यह वही व्यक्ति है। यह सोचा भी नहीं जा सकता। महर्षि वाल्मीकि क्या था और क्या हो गया? नाभि के आसपास रहने वाली उसकी चेतना कहां पहुंच गई? अंगुलिमाल नृशंस हत्यारा था। उसकी चेतना नाभि से नीचे रहती थी। जब अंगुलिमाल प्रतिबुद्ध हुआ, उसकी चेतना का ऊर्ध्वारोहण हो गया। अर्जुनमालाकार रोज सात प्राणियों की हत्या करता था। छह पुरुष और एक स्त्री प्रतिदिन मारने का संकल्प था। एक आदमी उपवास का व्रत लेता है, एक आदमी सामायिक का व्रत लेता है किन्तु अर्जुनमालाकार का व्रत था सात लोगों की हत्या। कुछ लोगों का यह संकल्प होता है माला फेरे बिना मैं मुंह में पानी भी नहीं डालता, सामायिक किये बिना भोजन-पानी नहीं लेता। अर्जुनमालाकार का संकल्प यह था-सात आदमियों को मारे बिना मुंह में अन्न जल नहीं लेना। वही अर्जुनमालाकार भगवान महावीर की शरण में गया और साधु बन गया। उसकी चेतना का रूपान्तरण हो गया। नाभि केन्द्रित चेतना का मस्तिष्क में प्रवेश हो गया। ___जम्बूकुमार के मन में तीन प्रश्न थे मैं कौन हूं? मैं कहां से आया हूं? यह किस कर्म का विपाक है? उसके मन में चौथा प्रश्न नहीं था। किन्तु वर्तमान संदर्भ में चौथा प्रश्न भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इन प्रश्नों का समाधान उसे पाना है पर कौन दे समाधान? समाधान के लिए जरूरी है गुरु की खोज। जम्बूकुमार इस खोज में है कि कोई गुरु मिल जायें और इन अज्ञात रहस्य भरे प्रश्नों का समाधान प्राप्त हो जाए। ये प्रश्न जम्बूकुमार के अंतःकरण को निरंतर आंदोलित कर रहे हैं, उद्वेलित कर रहे हैं। इस आंदोलन और उद्वेलन का परिणाम क्या होगा? जीवन से जुड़े इन यक्ष प्रश्नों का समाधान होगा या ये अनसुलझे ही रह जाएंगे? क्या किसी ज्ञानी गुरु का योग मिलेगा? गाथा परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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