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________________ गाथा परम विजय की जब कोई विशिष्ट घटना घटित होती है तब अनेक प्रश्न खड़े हो जाते हैं। अनेक प्रकार के लोग, अनेक प्रकार के चिन्तन और अनेक प्रकार की जिज्ञासाएं। __ प्रभात का समय। अंधकार समाप्त। सूर्योदय हो गया। प्रकाश फैल गया। सारी प्रवृत्तियां चालू हो गईं। प्राचीनकाल में रात का समय निवृत्ति का समय होता था। वर्तमान युग में तो लोग रात्रि में बहुत देर तक काम करते हैं। रात्रि में दो-ढाई बजे तक कार्य चलता रहता है। प्राचीनकाल में रात को लोग प्रायः घूमते भी नहीं थे। जो रात को घमता. वह निशाचर कहलाता। निशाचर या तो राक्षस. भत या रात को घमने वाला। रात को केवल वे घूमते जो प्रहरी का काम करते थे या चोर। किंतु अब सारी स्थिति बदल गई है। अब निशाचर और दिनचर की भेदरेखा भी शायद नहीं रही। न वह निवृत्ति की स्थिति रही। अधिकांश लोग रात को ही खाते हैं और रात को ही काम चलता है। प्राचीनकाल में गृहस्थ भी रात को कम खाते थे। भोजन का समय सूर्यास्त के पूर्व रहता था। रात्रिभोजन का वर्जन स्वास्थ्य और साधना-दोनों दृष्टियों से उपयुक्त माना गया है। प्रभात और अरुणिम प्रकाश के साथ सम्राट श्रेणिक और जम्बूकुमार का नगर प्रवेश। हजारों-हजारों लोगों में एक प्रबल उत्सुकता। सब लोग जम्बूकुमार से परिचित होना चाहते हैं। महाराज श्रेणिक हाथी पर आरूढ़ हैं और जम्बूकुमार भी। शेष सब गौण हैं, केवल सम्राट् श्रेणिक और जम्बूकुमार ये दो जन आकर्षण के केन्द्र बने हुए हैं। आज सम्राट श्रेणिक से भी अधिक आकर्षण और चर्चा का विषय जम्बूकुमार है। भव्य नगर-प्रवेश के क्षणों में पटहवादक यह घोषणा करते जा रहे हैं-आज जम्बूकुमार विजय-यात्रा से आया है। उसने सम्राट श्रेणिक के लिए युद्ध किया। वे शक्तिशाली एवं विद्यासंपन्न विद्याधरों के साथ युद्ध में विजय प्राप्त कर लौट आये हैं। __इस उदात्त घोषणा एवं गीत-नृत्य समारंभ के साथ प्रवेश हुआ। जिज्ञासा एवं आश्चर्यमिश्रित दृष्टि से लोगों ने जम्बूकुमार को देखा। स्थान-स्थान पर साश्चर्य यह प्रश्न पूछा जा रहा है यह तेजस्वी नवयुवक कौन है? कहां का रहने वाला है? उत्तर मिलता है-'अरे! क्या तुम इसे नहीं जानते? यह इसी राजगृह का निवासी है।' 'किसका बेटा है?' 'ऋषभदत्त का पुत्र है।' ___पुत्र शक्तिशाली होता है तो माता-पिता, परिवार सब साथ जुड़ जाते हैं।
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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