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________________ प्रायः लड़ाई बड़ी बात को लेकर नहीं होती। आज तक का इतिहास देखें। छोटी-छोटी घटना को लेकर महायुद्ध हुए हैं। चाहे महाभारत को पढ़ें, रामायण को देखें और चाहे इस शताब्दी के महायुद्ध को। छोटी बातों को लेकर ये महायुद्ध हुए हैं। महायुद्ध ही नहीं, घर-परिवार में सामान्य चीज को लेकर वैमनस्य के बीज की बुआई हो जाती है। दो भाइयों में संपत्ति का पूरा बंटवारा हो गया। केवल एक बढ़िया आदमकद शीशा बचा । शीशे को तो तोड़ें कैसे ? दो टुकड़े तो होते नहीं। एक भाई कहता है - मैं रखूंगा। दूसरा भाई कहता है-मैं रखूंगा। शीशे को लेकर झगड़ा हो गया। सोचा-झगड़ा कैसे मिटे? पिता के जो मित्र हैं, उनको बुलाएं। वे हमारे लिए पूज्य हैं, वे जो कहेंगे, मान लेंगे। उन्हें बुलाया, वे आए, सारी बात सुनी। उन्होंने कहा—'शीशा लाकर रखो, देखता हूं।' शीशा लाकर रखा गया। थोड़ी देर देखा। पीछे गए और सहसा ऐसा धक्का दिया कि शीशा नीचे गिर गया। टूट कर चूर-चूर हो गया। दोनों भाई बोले- 'आपने यह क्या किया? आप तो बुजुर्ग हैं, पिता के स्थान पर हैं। आपने यह क्या किया?' उसने कहा-'मैं इस शीशे को टूटा हुआ देख सकता हूं किन्तु तुम्हारे घर और पारस्परिक प्रेम को टूटा हुआ नहीं देख सकता।' ऐसे लोग होते हैं जो लड़ाना नहीं चाहते, समन्वय करा देते हैं। जम्बूकुमार आत्मज्ञ था, उसका कषाय उपशांत था। उसने परस्पर समन्वय कराने का प्रयत्न किया और उसमें सफल हो गया। रत्नचूल और मृगांक दोनों परस्पर गले मिले। दोनों ने यह प्रण कर लिया-'हम मैत्री का निर्वाह करेंगे, कभी परस्पर नहीं लड़ेंगे।' संधि, समझौता और समन्वय हो गया। जम्बूकुमार के मन में जो संकल्प था, वह कृतार्थ हो गया। जम्बूकुमार बोला- 'विद्याधरपति रत्नचूल ! अब आप स्वतंत्र हैं, बंदी नहीं हैं। अब आप दोनों भाई बन गये हैं। जब चाहे अपनी राजधानी जा सकते हैं।' गच्छ गच्छ यथास्थानं, स्वसद्मन्यपि निर्भयात्। वेष्टितश्च परीवारैः, स्वीयैः स्वीयसुखाप्तये ।। जम्बूकुमार ने यथाशीघ्र प्रस्थान की भावना व्यक्त करते हुए कहा- हम भी राजगृह की ओर जाना चाहते हैं। महाराज श्रेणिक से मिलना चाहते हैं।' ७४ गाथा परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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