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________________ सब बोले-'आपको अभी पता नहीं। रत्नचूल को बंदी बनाने वाला दूसरा कोई नहीं हो सकता। वह कुमार है, जो सामने खड़ा है, नाम है . जम्बूकुमार। इसने बनाया है बंदी।' चारों तरफ प्रशंसा होने लगी। सैनिक कह रहे हैं अगर यह नहीं होता तो हमारी जीत कभी नहीं होती। इस एक नवयुवक ने पता नहीं क्या जादू किया, कमाल का काम किया। छोटी सी हमारी सेना, हम छोटे विद्याधर किंतु एक कुमार ने ऐसा पौरुष भरा, ऐसी ऊर्जा दी, ऐसा प्राण संचार किया कि हम ( जीत गये और यह बड़ा राजा हार गया। मृगांक अपने आसन से उठा, कुमार के पास गया। जम्बूकुमार का आलिंगन किया, हाथ पकड़ा, सिंहासन के समीप लाया और अपने सिंहासन पर बिठा दिया। बिठाकर मृगांक ने कहा-'कुमार! मैं आपको नहीं जानता, आप मुझे नहीं जानते। हम अपरिचित हैं। मैं अपना भाग्य और सौभाग्य ही मानता हूं कि आप आये और आपने मेरा सहयोग किया। ___ महाप्राज्ञ! तुम धन्य हो। तुमने आज क्षात्र धर्म का जो गाथा उत्कर्ष दिखाया है, वह विलक्षण है, अदृष्ट और अपूर्व है। पर यह परम विजय की कैसे हुआ? मेरा मन अभी विस्मय से भरा है।' धन्योऽसि एवं महाप्राज्ञ! रूपनिर्जितमन्मथ। क्षात्रधर्मस्य चौन्नत्यमद्य जातं त्वया कृतम्।। विद्याधर व्योमगति आगे आया, बोला-'आप क्या बात कर रहे हैं? क्या पूछना चाहते हैं? कुमार नहीं बतायेगा, मैं बताऊंगा। मैं लाया हूं कुमार को और आपके सहयोग के लिए लाया हूं। मैं मगध, राजगृह नगर में गया, सम्राट श्रेणिक से मिला। मैंने सारी समस्या बताई। उस समय यह कुमार सभा में उपस्थित था। मैंने कहा-बड़ा भयंकर युद्ध होने वाला है। किसी की हिम्मत नहीं हुई। इस नवयुवक ने साहस बटोरा और कहा मैं चलूंगा। मेरे मन में भी विकल्प था कि यह अकेला युवक क्या करेगा? कहीं कुछ हो गया तो सम्राट् श्रेणिक हमें और बदनाम करेगा। मन में बड़ा संशय था। लाना नहीं चाहता था पर जम्बूकुमार का इतना आग्रह रहा कि मैं चलूंगा। मैं ले आया इसे। युद्धस्थल में इसको उतारा। उतारने के बाद क्या हुआ, यह सबकी आंखों के सामने है। इस एक युवक के कारण हमारी सारी स्थिति बदल गई। अन्यथा न जाने क्या होता? कहा नहीं जा सकता।' व्योमगति ने कहा-'रत्नचूल ने मुझे भी आहत कर दिया और मृगांक को भी आहत कर दिया। हम सब आहत हो गए। केवल जम्बूकुमार अनाहत है, यह अनाहत-नाद बना हुआ है। यह कभी आहत नहीं हुआ और बराबर जूझता रहा।
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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