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________________ - of on रत्नचूल ने अंधकार का प्रयोग किया। व्योमगति ने आकाश में सूरज उगा दिया। आज के वैज्ञानिक भी ऐसी कल्पना कर रहे हैं कि आकाश में ऐसा उपग्रह स्थापित कर दें कि रात कभी पड़े ही नहीं। यह चिन्तन चल रहा है। यह कोई असंभव बात नहीं है। आजकल असंभव जैसा कुछ रहा नहीं। पुराने जमाने में एक गुरांसा/यति ने चांद को आकाश में खड़ा कर दिया था। बहुत प्रसिद्ध घटना है। चेले से किसी बहिन ने पूछा-'आज तिथि क्या है?' चेले ने कहा-'पूर्णिमा है।' बहिन ने कहा 'क्या आज अमावस नहीं है?' चेले ने कहा-'आज पूनम ही है। शिष्य ने आग्रह भी कर लिया। उपाश्रय में आया; गुरु से पूछा-'गुरुदेव! आज तिथि क्या है?' गुरु बोले-'आज अमावस है।' चेला-'मैं तो पूनम कह आया।' गुरु-वापस जाओ, बता दो कि आज अमावस है। मैंने भूल से पूनम कह दिया।' 'गुरुदेव! मैं आपका चेला, फिर ऐसी भूल सुधार करूंगा? मैं तो नहीं जा सकता।' 'वत्स! इसमें आपत्ति क्या है? छद्मस्थ हैं। भूल हो सकती है, भूल हो गई।' चेले ने कहा-'गुरुदेव! ऐसा नहीं हो सकता। मैं अपनी बात बदल नहीं सकता। मैं आपका चेला बना हूं। आप इतने शक्तिशाली हैं। आपको कुछ करना पड़ेगा।' चेले ने बहुत आग्रह किया, गुरु ने सोचा-भोला है, इसकी बात रख दूंगा। गुरु ने कहा-'जाओ, कह दो, पूनम है।' चेला-'गुरुदेव! बहिन कहेगी, पूनम का लक्षण है-चांद दिखाई देता है।' गुरु-'तुम कह देना, चांद दिख जाएगा।' चेला वापस गया, कह दिया-'गुरुजी को पूछ आया हूं आज पूनम है।' बहिन–'पूनम को तो चांद का दर्शन होता है।' चेला-'तुम चांद को आकाश में देख लेना।' गुरु मंत्रविद् और विद्याधर थे। गुरु ने ऐसा प्रयोग किया कि आकाश में चांद दिखा दिया। विद्या बल से चांद दिखाया जा सकता है, सूरज दिखाया जा सकता है। यंत्र बल से भी दिखाया जा सकता है। परमाणुओं का विचित्र संसार है, इतने विचित्र परिवर्तन होते हैं कि कल्पना नहीं की जा सकती। ई-मेल और फैक्स कितना विचित्र है। एक पन्ना लिखा कहीं कोलकाता में और दो मिनट बाद वही पन्ना पहुंच गया लाडनूं में। वहां लिखा और यहां हूबहू उतर गया। अक्षर कौन लाया? अक्षर प्रकंपन बनते हैं और वे प्रकंपन यहां आकर फिर अक्षर बन जाते हैं। प्रकंपनों का विचित्र सिद्धांत है। गाथा परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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